pravargya
साम सं 12 व 13 का गान ह्रीयमाण व्रतपक्ष में किया जाता है।
इन्द्रं नरो नेमधिता हवन्ते यत् पार्या युनजते धियस्ताः।
शूरो नृषाता श्रवसश्च काम आ गोमति व्रजे भजा त्वं नः॥
- साम सं14 का गायन आहवनीय में पूर्व रोहिण पुरोडाश की आहुति के समय किया जाता है।
- साम सं 15 व 16 का गायन आहवनीय में घर्म की प्रधान आहुति के पश्चात् किया जाता है।
साम सं 17 का गायन उत्तर रोहिण पुरोडाश की आहुति के समय किया जाता है।
साम सं18 का गायन घर्मासन्दी पर महावीर पात्र को वापस रखते समय किया जाता है।
इत एत उदारुहन् दिवः पृष्ठान्यारुहन्।
प्रभूर्जयो यथा पथो द्यामङ्गिरसो ययुः॥ (3x)
साम सं19(वामदेव्यं साम) का गायन शान्ति पाठ के रूप में किया जाता है।
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