prithuka-prajapati

पृथुक ब्रह्माण्ड १.२.३६.६६( चाक्षुष मन्वन्तर में ८ देवों के पृथुक गण का उल्लेख ), भागवत १०.८०.१४( सुदामा द्वारा कृष्ण को भेंट देने के लिए ४ मुट्ठी पृथुक तण्डुल लेने का उल्लेख ), १०.८१.५( कृष्ण द्वारा सुदामा द्वारा लाए गए पृथुकों को मुट्ठी भर कर खाना, रुक्मिणी द्वारा निषेध ), वायु ६२.५७/२.१.५७( चाक्षुष मन्वन्तर के ५ देवगण में से एक गण ), ६२.६२/२.१.६२( पृथुक गण के देवों के नाम ) prithuka

 

पृथुलाक्ष भागवत ९.२३.१०( चतुरङ्ग - पुत्र पृथुलाक्ष के ३ पुत्रों के नाम, अङ्ग वंश ), मत्स्य ४८.९६( चतुरङ्ग - पुत्र, चम्प - पिता, अङ्ग वंश ), विष्णु ४.१८.१९( वही)

 

पृथुश्रवा ब्रह्म २.२९.२( कक्षीवान् - पुत्र, अविवाहित रहने की इच्छा पर गौतमी में स्नान से पितृ ऋण से मुक्ति ), ब्रह्माण्ड २.३.७०.२२( शशबिन्दु के ६ प्रधान पुत्रों में से एक, धर्म - पिता, यदु वंश ), ३.४.१.६५( प्रथम सावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक ), भागवत ९.२३.३३( शशबिन्दु के ६ प्रधान पुत्रों में से एक, धर्म - पिता, यदु वंश ), वायु ९५.२२/२.३३.२२( वही), विष्णु ३.२.२४( नवम मनु दक्ष सावर्णि के पुत्रों में से एक ) prithushravaa

 

पृथुसेन भागवत ५.१५.६( पृथुषेण : विभु व रति - पुत्र, आकूति - पति, नक्त - पिता, भरत वंश ), ९.२१.२४( पार - पुत्र, वितथ वंश ), मत्स्य ४८.१०२( वृषसेन - पुत्र, अङ्ग वंश ), ४९.५२( रुचिराश्व - पुत्र, पौर - पिता, वितथ वंश ), विष्णु ४.१९.३७( रुचिराश्व - पुत्र, पार - पिता, वितथ वंश ) prithusena

 

पृथूदक पद्म ३.२७.३२( पृथूदक तीर्थ का माहात्म्य ), भागवत १०.७८.१९( सरस्वती तट पर स्थित तीर्थों में से एक ), वामन २१.२१( श्रीहरि द्वारा देवों को विजय हेतु कुरुक्षेत्र में महातिथि में पृथूदक तीर्थ में पितरों की पूजा का निर्देश ), २२.४४( कुरुक्षेत्र में पृथूदक सरोवर की महिमा व विस्तार ), ५०.१( पृथूदक के पृथूदक नाम का कारण, कुरुक्षेत्र में पृथूदक तीर्थ में पितर श्राद्ध का महत्त्व ), ५७.८८( पृथूदक द्वारा स्कन्द को प्रदत्त ६ गणों के नाम ), ५८.११४( पृथूदक तीर्थ में स्कन्द की क्रौञ्च वध के पाप से मुक्ति ) prithoodaka/ prithudaka/ prithuudaka

 

पृथूदर कथासरित् १२.६.३१( पृथूदर यक्ष की कन्या सौदामिनी का वृत्तान्त )

 

पृथ्वीधर मत्स्य २६८.२३( वास्तुमण्डल के ८१ देवताओं में से एक पृथ्वीधर के लिए मांस व कूष्माण्ड दान का निर्देश ), लक्ष्मीनारायण ३.१८२( कर्णपुर का राजा, मधुविन्दा - पति, पुत्र की अन्धता निवारण के लिए तप का वृत्तान्त ) prithveedhara/ prithvidhara

 

पृथ्वीपति कथासरित् १०.१०.११०( धूर्त्त द्वारा राजा पृथ्वीपति को माध्यम बनाकर धन एकत्र करने का वृत्तान्त )

 

पृथ्वीराज भविष्य ३.३.१.२८ ( पृथ्वीराज के धृतराष्ट} का कलियुग में अंशावतार होने का उल्लेख, वेला कन्या - पिता ), ३.३.५.१०( देवपाल व कीर्तिमालिनी - पुत्र, महावती नगरी को त्याग कर देहली नगरी की स्थापना ), ३.३.६.१३( संयोगिनी द्वारा स्वयंवर में पृथ्वीराज की मूर्ति का वरण, पृथ्वीराज द्वारा जयचन्द्र की सेना से युद्ध ), ३.३.२७.७४( परिमल राजा से पृथ्वीराज की पराजय व क्षमा याचना ), ३.३.३२.२१४( पृथ्वीराज द्वारा रुद्र - प्रदत्त अस्त्र से परिमल, धान्यपाल, तालन व लक्षण का वध ), ३.३.३२.२३४( आह्लाद द्वारा पृथ्वीराज की आंखें नीली करने पर शिव द्वारा पृथ्वीराज का त्याग ), ३.३.३२.२४६( बलि - सेनानी सहोड्डीन/शहाबुद्दीन गौरी द्वारा युद्ध में पृथ्वीराज के वध का प्रयत्न, पृथ्वीराज का बन्धनग्रस्त होना, मन्त्री चन्द्रभट्ट द्वारा नृपाज्ञा से स्वामी का वध ) prithveeraaja/ prithviraja

 

पृश्नि गर्ग १.११.३७( सुतपा प्रजापति व उनकी पत्नी पृश्नि द्वारा सन्तान हेतु तप, जन्मान्तरों में कश्यप व अदिति आदि के रूप में जन्म लेकर भगवान् को पुत्र रूप में प्राप्त करने की कथा ), भागवत ६.१८.१( सविता - पत्नी पृश्नि से उत्पन्न सावित्री आदि ८ सन्तानों के नाम ), वायु ७३.६१/२.११.१०१( पृश्निज : पितरों हेतु श्राद्ध करने वाले गणों में से एक ), ९६.१०१/२.३४.१०१( पृश्नि के पुत्र - द्वय श्वफल्क व चित्रक का उल्लेख ), महाभारत शान्ति ३४१.४५(पृश्निरित्युच्यते चान्नं वेदा आपोऽमृतं तथा), prishni

 

पृश्निगर्भ भागवत १०.३.४१( पृश्नि व सुतपा के तप से विष्णु का पृश्निगर्भ नाम से उनके पुत्र बनने का वृत्तान्त ), १०.६.२५( पृश्निगर्भ से बुद्धि की रक्षा की प्रार्थना ) prishnigarbha

 

पृषत् ब्रह्माण्ड ३.४.१.१००( सुत्रामाणः प्रयाज देवों के आज्याशिनः तथा सुकर्माणः अनुयाज्य देवों के पृषदाज्याशिनः होने का कथन ), भागवत ९.२२.२( सोमक के १०० पुत्रों में कनिष्ठतम, द्रुपद - पिता, दिवोदास वंश ), विष्णु  ४.१९.७३( सोमक के १०० पुत्रों में कनिष्ठतम, द्रुपद - पिता, दिवोदास वंश ), हरिवंश १.२०.७२( द्रुपद - पिता पृषत् द्वारा काम्पिल्य पर पुन: अधिकार करने का उल्लेख ) prishat


 References on Prishat

 

 पृषदश्व भागवत ९.६.१( विरूप - पुत्र, रथीतर - पिता ), मत्स्य १४५.१०३( मन्त्रकार ३३ आङ्गिरसों में से एक ), वायु ८८.६/२.२६.६( विरूप - पुत्र, रथीतर - पिता ), ८८.२६/२.२६.२६( वृषदश्व : पृथु - पुत्र, अन्ध्र - पिता ), विष्णु ४.२.८( विरूप - पुत्र, रथीतर - पिता ), ४.३.१८( अनरण्य - पुत्र, हर्यश्व - पिता, मान्धाता वंश ) prishadashva

 

 पृषध्र देवीभागवत १०.१३( वैवस्वत मनु - पुत्र, भ्रामरी देवी की उपासना से मेरु सावर्णि मनु बनना ), भागवत ८.१३.३( वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक ), ९.१.१२( श्राद्धदेव मनु व श्रद्धा के १० पुत्रों में से एक ), ९.२.३( मनु के १० पुत्रों में से एक, गौ हत्या के कारण पृषध्र द्वारा वसिष्ठ से शूद्र होने के शाप की प्राप्ति, अग्नि में भस्म होकर ब्रह्म को प्राप्त होना ), मत्स्य ११.४२( वैवस्वत मनु के १० दिव्य मानुष पुत्रों में से एक ), १२.२५( पृषध्र द्वारा गोवध के कारण गुरु के शाप से शूद्र होने का उल्लेख ), मार्कण्डेय ११२/१०९( मनु - पुत्र पृषध्र द्वारा होमधेनु की हत्या पर शूद्र होने के शाप की प्राप्ति की कथा ) prishadhra

 

पृष विष्णु ३.१.११( पृषभ : स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), ३.२.३०( ११वें धर्मसावर्णि मन्वन्तर में पृषा नामक इन्द्र का उल्लेख ), ४.१८.१०( पृषदर्भ : शिबि के ४ पुत्रों में से एक, अनु वंश ),

 

पृष्ट ब्रह्माण्ड ३.४.१.८८( सुकर्मा नामक देवगण के देवों में से एक ), वायु २८.८( पृष्टि : मरीचि व सम्भूति की कन्याओं में से एक ), १००.९२/२.३८.९२( सुकर्मा नामक देवगण के देवों में से एक ),

 

पृष्ठ भागवत ३.१२.२५( ब्रह्मा के पृष्ठ से अधर्म की उत्पत्ति का उल्लेख, स्तन से धर्म ), स्कन्द ३.२.६.६( वेदमयी गौ के ऋग्वेद पृष्ठ होने का उल्लेख, स्तन साम), ५.३.८३.१०७( गौ के पृष्ठ पर शुभाशुभनिरीक्षक यम की स्थिति का उल्लेख, प्रस्राव में गङ्गा ), ५.३.९२.२२( महिषी दान के संदर्भ में महिषी के ताम्रपृष्ठों के निर्माण का निर्देश, खुर आयस ), महाभारत आश्वमेधिक दाक्षिणात्य पृ. ६३४८( कपिला गौ के पृष्ठ में नक्षत्रगणों की स्थिति का उल्लेख, मूत्र में जाह्नवी आदि ), लक्ष्मीनारायण २.२७.१०५( वासुकि - पृष्ठ पर दूर्वा की उत्पत्ति ), कथासरित् १८.४.९६( गज के पृष्ठ का स्पर्श करने से चर्म/ढाल में रूपान्तरित होना ), द्र. कालपृष्ठ, घृतपृष्ठ prishtha

References on Prishtha

 

पेगन् लक्ष्मीनारायण २.५७.४८( पेगन् व असीरक दैत्यों के यम - अनुचरों अग्निमाल व वधीरक से युद्ध व मृत्यु का कथन ),

 

पेय लक्ष्मीनारायण २.२१८( श्रीहरि के पेयिस्था नगरी में आगमन व उपदेश का वर्णन ) peya

 

पेश भागवत ४.२५.५४( पेशस्कृत् : राजा पुरञ्जन के नगर के २ अन्धे नागरिकों में से एक, पुरञ्जन का अग्रगामी ), ४.२९.१५( हस्त - पादों का अन्धे नागरिकों के रूप में कथन ), ११.१६.३०( विभूति वर्णन के संदर्भ में भगवान् के सुपेशों में पद्मकोश होने का उल्लेख ) pesha

 

पेषणी अग्नि ७७.१६( पेषणी पूजा विधि ) peshanee/ peshani

 

पैजवन भागवत १२.६.५८( पैज : जातूकर्ण्य के ४ शिष्यों में से एक ), स्कन्द ६.२४३+ ( सत्शूद्र, गालव द्वारा शालिग्राम शिला पूजन का परामर्श, शालग्राम के भेद, उत्पत्ति ; पैजवनोपाख्यान का आरम्भ ) paijavana

 

पैठीनसी स्कन्द २.७.१४.३४( दुर्वासा - शिष्य सत्यनिष्ठ के पैठीनसी पुरी में गमन व छिन्नकर्ण पिशाच  की मुक्ति की कथा ),

 

पैल देवीभागवत ३.१०.२१( देवदत्त के पुत्रेष्टि यज्ञ में पैल के प्रस्तोता बनने का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१६.२१( १६ वेदाङ्ग वेदज्ञों में से एक, निदान शास्त्र का प्रवर्तन करने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.३४.१३( द्वैपायन व्यास के ५ शिष्यों में से एक, व्यास से ऋग्वेद ग्रहण करने का उल्लेख ), १.२.३४.२४( पैल द्वारा संहिता के २ भाग करके शिष्यों बाष्कल व इन्द्रप्रमति को देने का उल्लेख ), भागवत १.४.२१( व्यास के शिष्यों में से एक पैल के ऋग्वेद का आचार्य होने का उल्लेख ),  ९.२२.२२( व्यास द्वारा स्वशिष्यों पैलादि को भागवत पुराण की शिक्षा न देने के कारण का उल्लेख ),  १०.७४.८( युधिष्ठिर द्वारा राजसूय यज्ञ के लिए वरण किए गए ऋत्विजों में से एक ), १२.६.५२( व्यास द्वारा पैल को बह्वृच नामक संहिता प्रदान करने तथा पैल द्वारा स्वशिष्यों इन्द्रप्रमति व बाष्कल को प्रदान करने का कथन ), वायु ६०.१४( ऋग्वेद श्रावक, पैल की शिष्य परम्परा ), विष्णु ३.४.१६( पैल द्वारा व्यास से ऋग्वेद रूप पादप ग्रहण करके स्वशिष्यों इन्द्रप्रमति व बाष्कल को देने का उल्लेख ) paila

 

पैलूष ब्रह्म २.६९( कवष - पुत्र, ज्ञान खड्ग से क्रोध लोभादि का हनन, सर्व खड्ग तीर्थ की उत्पत्ति )

 

पैशुन्य महाभारत वन ३१३.९९( पर दूषण के पैशुन्य होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद )

 

पोता पद्म १.३४ (देवरात : ब्रह्मा के यज्ञ में पोता), ब्रह्माण्ड ३.४.२०.२४( दण्डनायिका देवी का पोत्रिणी विशेषण ), मत्स्य १६७.९( यज्ञ पुरुष के उदर से प्रतिहर्त्ता व पोता की उत्पत्ति का उल्लेख ), वायु २९.२७( पौत्रेय : शंस्य अग्नि के ८ धिष्ण्य पुत्रों में से एक, अन्य नाम हव्यवाहन ), कथासरित् ११.१.६( पोतक : रुचिरदेव व पोतक भ्राता द्वय में हस्तिनी व तुरगद्वय के वेगकारी होने की शर्त का वृत्तान्त ), १५.२.३५( पोत्रराज : पोत्रराज - कन्या अम्बरप्रभा के नरवाहनदत्त की भार्या बनने का वृत्तान्त ) potaa

References on Potaa

 

पोत्रिणी ब्रह्माण्ड ३.४.१७.६( ललिता देवी के पोत्रीमुखी/पोत्रिणी नामक क्रूर स्वरूप का कथन ), ३.४.२०.५( किरिचक्ररथेन्द्र के द्वितीय पर्व पर स्थित देवियों में से एक )

 

पोषण वायु ७५.२०/२.१३.२०( देवों व पितरों हेतु अपेक्षित ३ कृत्यों में से एक )

 

पोष्टा ब्रह्माण्ड ३.४.१.१७( अमिताभ देव गण के २० देवों में से एक )

 

पौण्डरीक पद्म २.३७.३५( पुण्डरीक यज्ञ में गज हनन का उल्लेख ), मत्स्य १८८.८९( अमरकण्टक पर्वत की परिक्रमा से पौण्डरीक यज्ञ के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), महाभारत अनुशासन १०२.५४(रथन्तर व बृहत् दोनों साम गाये जाने वाले, जहां वेदी पर पुण्डरीक फैलाये जाते हैं, उस याग का कथन),  विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१( संगीत में मध्यम ग्रामिकों के २० प्रकारों में से एक ), स्कन्द ७.१.७५.१०(नारद कृत पौण्डरीक नामक यज्ञ का कथन), द्र. पुण्डरीक paundareeka/ paundarika

 

पौण्ड्र गर्ग २.२२.१७( मत्स्य रूप धारी असुर पौण्ड्र द्वारा तपोरत हंस मुनि का निगरण, कृष्ण द्वारा चक्र से पौण्ड्र का वध ), नारद १.५६.७४२( पौण्ड्र देश के कूर्म के पादमण्डल में से एक होने का उल्लेख ), पद्म ६.१३३.२६( देवदारु वन में पौण्ड्र तीर्थ में विष्णु के निवास का उल्लेख ), विष्णु ४.१८.१३( बलि के ५ क्षेत्रज पुत्रों में से एक ), स्कन्द ३.१.४४.१९(राम-रावण युद्ध में पौण्ड्र के नल से युद्ध का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.२४७.५५( नागपुर के पौण्ड्र संज्ञक गन्धर्वराज पुण्डरीक द्वारा ललित गन्धर्व को राक्षस होने के शाप का वृत्तान्त ) paundra

 

पौण्ड्रक गर्ग २.२२.१८ ( मत्स्य रूप धारी पौण्ड्र असुर द्वारा तपोरत हंस मुनि को निगलने तथा कृष्ण द्वारा चक्र से पौण्ड्र का हनन करके हंस मुनि की रक्षा का कथन ), ७.१८.१३( कारूष - अधिपति, प्रद्युम्न की पूजा का उल्लेख ), पद्म ६.२५१.१( काशिराज पौण्ड्रक वासुदेव द्वारा शिव की आराधना से वासुदेव कृष्ण के समान चिह्नों की प्राप्ति, नारद के उकसाने पर कृष्ण को पराजित करने के लिए द्वारका पर आक्रमण, कृष्ण द्वारा पौण्ड्रक का वध, पौण्ड्रक - पुत्र दण्डपाणि का वृत्तान्त ), ब्रह्म १.९८( कृष्ण द्वारा काशिराज सहित पौण्ड्रक के वध का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड ३.४.१.८१( तृतीय सावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक ), भागवत १०.६६.१( करूषाधिपति पौण्ड्रक द्वारा स्वयं को वासुदेव घोषित करना, कृष्ण द्वारा पौण्ड्रक व उसके मित्र काशिराज के युद्ध में वध का वृत्तान्त ), ११.५.४८( कृष्ण से वैर करके सारूप्य मुक्ति पाने वालों में से एक ), वामन २२.२३(राजा कुरु द्वारा यम के पौण्ड्र संज्ञक महिष की सीरकर्षक रूप में प्राप्ति का उल्लेख), ५५.६९( चण्डमारी देवी द्वारा यम के पौण्ड्र नामक महिष के सर्पाकार विषाण /सींग उखाड कर युद्ध में प्रयोग करने का उल्लेख ), वायु १००.८४/२.३८.८४( तृतीय सावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक ), विष्णु ५.३४.४( पौण्ड्रक वासुदेव द्वारा स्वयं को वासुदेव अवतार मानकर कृष्ण को चुनौती, कृष्ण द्वारा पौण्ड्रक - मित्र काशिराज सहित पौण्ड्रक के वध का वृत्तान्त ), स्कन्द ६.५८.६( शूद्र बालक, गङ्गा में मिथ्या शपथ से कुष्ठ प्राप्ति ), ७.१.९९.४( काशी के पौण्ड्र वासुदेव द्वारा स्वयं को विष्णु - अवतार वासुदेव मानकर चक्रादि चिह्न धारण करने तथा वासुदेव कृष्ण द्वारा चक्र से पौण्ड्र वासुदेव का वध ), हरिवंश २.१०३.२६ (वसुदेव व सुतनु – पुत्र), ३.७४( नरकासुर - सखा, द्रोण - शिष्य, पौण्ड्रक के प्रभाव का वर्णन ), ३.९१+ ( स्वघोषित वासुदेव, नारद से संवाद, द्वारका पर आक्रमण, सात्यकि से युद्ध, कृष्ण से संवाद, कृष्ण द्वारा वध ), ३.९७.६ ( पौण्ड्रक का सात्यकि से युद्ध), लक्ष्मीनारायण १.२४७.५५( नागपुर के पौण्ड्र संज्ञक गन्धर्वराज पुण्डरीक द्वारा ललित गन्धर्व को राक्षस होने के शाप का वृत्तान्त ), २.८०.२( पौण्ड्रक नगर के राजा बलेशवर्मा द्वारा अतिथि हेतु पुत्र पुण्ड्र का हृदय भोजन रूप में देने आदि का वृत्तान्त ), ३.१६.५०( रुद्र के ओज से उत्पन्न पौण्ड्रक नामक कृष्ण वर्ण के महिष के यमराज का वाहन होने का उल्लेख ) paundraka

 

पौण्ड्रवर्धन ब्रह्माण्ड ३.४.४४.९३( ५१ पीठों में से एक ), वायु १०४.७९/२.४२.७९( पौण्ड्रवर्धन तीर्थ की नयनों में स्थिति का उल्लेख ), कथासरित् ३.४.२५४( विदूषक द्वारा पौण्ड्रवर्धन नगर में ब्राह्मणी के एकमात्र पुत्र की प्राणरक्षा का वृत्तान्त ), ३.५.१७( पाटलिपुत्र - निवासी द्यूतासक्त देवदास वणिक् - पुत्र द्वारा पौण्ड्रवर्धन नगर में जाकर स्वगृह में स्थित धन का रहस्य जानने का वृत्तान्त ) paundravardhana

 

पौतिमाष्य लक्ष्मीनारायण ३.२१९.५( लुब्धक द्वारा मृग रूप धारी पौतिमाष्य ऋषि व उनकी पत्नी सामकृषि के दर्शन, ऋषि के उपदेश से लुब्धक की मुक्ति का वृत्तान्त )

 

पौर ब्रह्माण्ड १.२.३२.१०८( पौरकुत्स : ३३ मन्त्रकार आङ्गिरस ऋषियों में से एक ), २.३.८.९५( पराशरों के ८ पक्षों में से एक ), मत्स्य ४९.५२( पृथुसेन - पुत्र, नीप - पिता, भरद्वाज/वितथ वंश ), १५९.२०( भार्गव गोत्रकार ऋषियों में से एक ), कथासरित् १४.४.३( चक्रवर्ती राजा नरवाहनदत्त के समक्ष दिव्य प्रतीहार पौररुचिदेव के प्रकट होने का कथन ) paura

 

पौरव मत्स्य २४.७०( पूरु के वंश की पौरव नाम से ख्याति का उल्लेख ), ४९.७२( महापौरव : सार्वभौम - पुत्र, रुक्मरथ - पिता ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१( पौरवी : ७ मध्यम ग्रामिणियों में से एक ), कथासरित् ८.१.४५( लावाणक के राजा पौरव की कन्या सुलोचना के सूर्यप्रभ विद्याधर की प्रेयसी होने का उल्लेख ) paurava

 

पौरवी ब्रह्माण्ड २.३.७१.१६१( वसुदेव की १३ पत्नियों में से एक, बाह्लीक - अनुजा ), भागवत ९.२२.३०( युधिष्ठिर - पत्नी, देवक - माता ), ९.२४.४५-४७( वसुदेव की पत्नियों में से एक, १२ पुत्रों की माता ), वायु ९६.१६०/२.३४.१६०( वसुदेव की पत्नियों में से एक, वल्मीक - पुत्री ) pauravee/ pauravi

 

पौरुष योगवासिष्ठ २.६( दैव निराकरण नामक सर्ग ), २.७( पौरुष प्राधान्य समर्थन नामक सर्ग ), २.८( दैव का निराकरण नामक सर्ग ), २.९( कर्म की सिद्धि - असिद्धि में दैव की अपेक्षा वासना/मन/पुरुष को ही कारण बताना ) paurusha

 

पौरुषेय ब्रह्माण्ड १.२.२३.६( शुक्र - शुचि मासों में सूर्य रथ पर पौरुषेय व वध राक्षसों की स्थिति का उल्लेख ), २.३.७.८९( यातुधान के १० राक्षस पुत्रों में से एक ), २.३.७.९३( पौरुषेय के ५ पुत्रों के नाम ), भागवत १२.११.३५( शुक्र/ज्येष्ठ मास में सूर्य के रथ पर पौरुषेय राक्षस की स्थिति का उल्लेख ) paurusheya

 

पौर्णमास ब्रह्माण्ड २.३.३.६( ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न जय देव गण में से एक, ब्रह्मा के शाप से अन्य मन्वन्तरों में जन्म ), भागवत १२.१.२३( श्री शान्तकर्ण - पुत्र, लम्बोदर - पिता, कलियुग में अन्ध्र जातीय राजाओं में से एक ), वायु ६६.६/२.५.६( ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न जय देव गण में से एक, ब्रह्मा के शाप से अन्य मन्वन्तरों में जन्म ), ६७.५/२.६.५( वही), विष्णु १.१०.६( मरीचि व संभूति - पुत्र, विरज व पर्वत - पिता ), शिव ७.१.१७.२२( मरीचि व संभूति की सन्तानों में से एक ), द्र. वंश मरीचि paurnamaasa

 

पौल ब्रह्माण्ड २ .३.७४.२६८( १०० पौल राजाओं के अस्तित्व का उल्लेख ), मत्स्य १९६.२२( पौलिकायनि : पञ्चार्षेय प्रवरों में से एक ), २००.६( पौलि : एकार्षेय महर्षियों के प्रवरों में से एक ) paula

 

पौलस्त्य : वायु ६२.१६/२.१.१६( स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में पौलस्त्य दत्तालि का उल्लेख ), ६२.४२/२.१.४२( तामस मन्वन्तर में सप्तर्षियों में चैत्र पौलस्त्य का उल्लेख ), ६२.५३/२.१.५३( रैवत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में पौलस्त्य वेदबाहु का उल्लेख ), द्र. पुलस्त्य  paulastya

 

पौलह वायु ६२.१६/२.१.१६( स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में पौलह धावां का उल्लेख ), ६२.४२/२.१.४२( तामस मन्वन्तर में सप्तर्षियों में से एक पौलह वनपीठ का उल्लेख ), ६२.५३/२.१.५३( रैवत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में पर्जन्य पौलह का उल्लेख ), १००.८३/२.३८.८३( ११वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में पौलह अग्नितेजा का उल्लेख ), १००.९७/२.३८.९७( १२वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में पौलह तपोरति का उल्लेख ), १००.१०७/२.३८.१०७( १३वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में पौलह तत्त्वदर्शी का उल्लेख ), द्र. पुलह paulaha

 

पौलोम भागवत ८.१०.३४( देवासुर संग्राम में पौलोमों का विश्वेदेवों  से युद्ध ), मत्स्य ६.२४( पुलोमा व मारीच कश्यप? से पौलोम दानवों की उत्पत्ति का कथन ), २७३.३६( पौलोमों व आन्ध्र जातीय राजाओं व परीक्षित के बीच काल की गणना ), विष्णु १.२१.९( पौलोमों के मारीच व पुलोमा - पुत्र होने का उल्लेख ), स्कन्द ७.१.१२५( पौलोमीश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, तारक भय से त्रस्त शक्र की भार्या पौलोमी द्वारा लिङ्ग की पूजा ),

 

पौलोमी ब्रह्माण्ड २.३.१.७५( पुलोम - कन्या पौलोमी द्वारा भृगु से शुक्राचार्य पुत्र को जन्म देने का कथन ), २.३.१.९१( पौलोमी द्वारा च्यवन/प्रचेता को जन्म देने का कथन ), मत्स्य १९५.११( भृगु द्वारा पुलोमा की दिव्य सुता से १२ याज्ञिक देव उत्पन्न करने का कथन ), १९५.१४( भृगु व पुलोमा से देवों से हीन कोटि के पुत्रों च्यवन व आप्नुवान् की उत्पत्ति का उल्लेख ), वायु ६५.७३/२.४.७३( पुलोम - कन्या पौलोमी द्वारा भृगु से शुक्राचार्य पुत्र को जन्म देने का कथन ), स्कन्द ७.१.१२५.२( तारक भय से त्रस्त शक्र की भार्या पौलोमी द्वारा पूजित पौलोमीश्वर लिङ्ग के माहात्म्य का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.४७३.५२( पौलोमी शची द्वारा कृष्ण की पूजा, कथा श्रवण से शिव द्वारा पौलोमी को अभीष्ट प्राप्ति हेतु मनोरथ तृतीया व्रत के चीर्णन का निर्देश, व्रत की विधि ) paulomee/ paulomi

 

पौष भविष्य ३.४.९.१५( पौष मास के सूर्य का माहात्म्य )pausha

 

पौष्क पद्म ६.१३३.२६( काश्मीर मण्डल में पौष्क तीर्थ में विष्णु के वास का उल्लेख )

 

पौष्यञ्जि ब्रह्माण्ड १.२.३३.७( सामवेद के श्रुतर्षियों में से एक ), भागवत १२.७.७७( सुकर्म - शिष्य पौष्यञ्जि के ५ शिष्यों के नाम आदि ), वायु ६१.३३( साम आचार्य सुकर्मा के २ दिव्य शिष्यों में से एक ; पौष्यञ्जी के सामग शिष्यों के भेदों का कथन ), ६१.४८( सामवेद के २ श्रेष्ठतम आचार्यों में से एक ) paushyanji

 

प्रकम्पन कथासरित् ८.२.२२४( प्रह्लाद के अनुयायी मुख्य असुरों में से एक ), ८.४.७९( कालकम्पन द्वारा प्रकम्पन के वध का उल्लेख ), ८.७.३४( प्रकम्पन द्वारा तेज:प्रभ के वध का उल्लेख, अश्विनौ से युद्ध ) prakampana

 

प्रकाश ब्रह्माण्ड ३.४.३५.४६( महाप्रकाशा : मार्तण्ड भैरव की ३ शक्तियों में से एक ), मत्स्य ९.२१( प्रकाशक : रैवत मनु के १० पुत्रों में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.५२.७६( विश्वावसु गन्धर्व द्वारा स्वयंप्रकाश ऋषि को ३०० कन्याएं प्रदान करने का प्रस्ताव, ऋषि द्वारा स्वदेह पालन में भी कठिनाई बताकर अस्वीकृति ), २.२२०.४१( स्वीयप्रकाश ऋषि द्वारा नारद को स्वयं के सर्वदा सुखी होने के कारण का वर्णन ), २.२६९.५२( राजा अभयाक्ष द्वारा स्वत:प्रकाश ऋषि से त्यागि दीक्षा ग्रहण करने का कथन ) prakaasha

 

प्रकृति गणेश २.१४७.१( दैवी, आसुरी व राक्षसी प्रकृतियों के चिह्नों का कथन ), गरुड ३.११.६(अजा व परा प्रकृति का कथन),  देवीभागवत ९.१+ ( प्रकृति की निरुक्ति, विस्तृत विवेचन ), ९.१.८( प्रकृति की निरुक्ति, ५ मूल प्रकृतियों का वृत्तान्त ), पद्म १.६२.८९( परा प्रकृति के सात/पांच रूपों गायत्री, स्वर्लक्ष्मी आदि द्वारा प्रकृति की अभिव्यक्ति का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त १.३.७०( परमात्मा कृष्ण की बुद्धि से प्रकट मूल प्रकृति के स्वरूप  का कथन ; प्रकृति देवी द्वारा कृष्ण की स्तुति ), १.३०.१३( नारायण द्वारा नारद को नारायणी/प्रकृति शक्ति के ज्ञान के लिए विवाह का निर्देश, एक मूल प्रकृति के सृष्टि में पञ्चविध विभक्त होने का कथन ), २.१.५( प्रकृति शब्द की निरुक्तियां, ब्रह्मवैवर्त्त पुराण के प्रकृति खण्ड का आरम्भ ; विभिन्न देवताओं की शक्तियों के नाम ), २.४.४( पञ्चविध प्रकृति गौरी, दुर्गा, राधा आदि का उल्लेख ), २.६३( राजा सुरथ व समाधि वैश्य के मेधा ऋषि से संवाद के संदर्भ में प्रकृति देवी द्वारा समाधि वैश्य को परम ब्रह्म की प्राप्ति के उपाय का वर्णन ), २.६४.१( राजा सुरथ द्वारा किए गए प्रकृति के ध्यान के स्वरूप व पूजा विधि का वर्णन ), २.६५.१३( राजा सुरथ की भक्ति से प्रसन्न होकर प्रकृति द्वारा स्वयं व कृष्ण के विषय में सुरथ को प्रदत्त ज्ञान का वर्णन ), २.६६.६( प्रकृति के स्तोत्र का वर्णन ), २.६७.९( प्रकृति/दुर्गा के कवच का कथन ), ३.७.६२( श्रीनारायण द्वारा प्रकृति के महत्त्व का वर्णन ), ४.४३.७४( शिव द्वारा प्रकृति हेतु स्तोत्र पाठ, प्रकृति द्वारा शिव को हिमवान् - पुत्री के रूप में जन्म लेकर पत्नी बनने का वरदान ), ४.९४.१०७( प्रकृति के बुद्धिरूपा होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.१९५( सात प्रकृतियों द्वारा परस्पर धारण का कथन ; ७ संख्या का विस्तार ), ३.४.३.३७( राजा की प्रजा के अर्थ में बहुवचन में प्रकृति का उल्लेख ), भविष्य ३.४.२०.१४( प्रकृति के परा व अपरा नामक २ भेद व तन्मात्राओं के अनुसार ८ भेदों का कथन ), भागवत ७.७.२२( ८ प्रकृतियों के ३ गुणों व १६ विकारों तथा उनसे निर्मित देह का कथन, द्र. गीताप्रेस गोरखपुर का हिन्दी अनुवाद), ११.२२.१( कृष्ण उद्धव संवाद में पुरुष व प्रकृति के सम्बन्ध पर विभिन्न दृष्टिकोणों से विचार करने पर तत्त्वों की संख्या में परिवर्तन का विवेचन ), ११.२२.२६( कृष्ण द्वारा उद्धव हेतु प्रकृति व पुरुष में भेद - अभेद की विवेचना ), १२.४.५( प्राकृतिक प्रलय में प्रलय काल में ७ प्रकृतियों के लय का उल्लेख ), मत्स्य ३.१४( सत्त्व, रज व तम नामक गुणत्रय की साम्यावस्था का प्रकृति नाम होने का उल्लेख ; प्रकृति के गुणों में क्षोभ से सृष्टि का वर्णन ), ३४.२६( राजा की प्रजा के अर्थ में बहुवचन में प्रकृति का उल्लेख ), २२६.६( राजा की प्रजा के अर्थ में बहुवचन में प्रकृति का उल्लेख ), वायु ४.९०/१.४.८०( प्राकृत सर्ग का निरूपण ), १.६.५६/६.६०( ३ प्राकृत, ५ वैकृत तथा एक प्राकृत - वैकृत सर्गों का कथन ), ४९.१८५( सात प्रकृतियों द्वारा परस्पर धारण का कथन ; ७ संख्या का विस्तार ), १०१.१२/२.३९.१२( ७ अकृत लोकों की प्राकृत संज्ञा ), १०२.५९( प्राकृत : ३ प्रकार के बन्धों में से एक ), विष्णु ६.३.१( प्राकृत प्रलय का निरूपण ), विष्णुधर्मोत्तर १.४१.२( समुद्र मन्थन से उत्पन्न लक्ष्मी रूपी प्रकृति के संदर्भ में विश्व की शक्तियों के नाम तथा उनके लक्ष्मी का ही स्वरूप होने का कथन ), शिव २.१.६.५४( आरम्भ में प्रकृति व पुरुष की सत्ता का उल्लेख ; प्रकृति से उत्पन्न महान्, अहंकार आदि २५ तत्त्वों के पुरुष के बिना जड होने का कथन ), २.५.२६.१६( माया नाश हेतु मूल प्रकृति का तीन गुणों के रूप में तीन देवियों के रूप में प्राकट्य ), ६.९.९( परा प्रकृति के २३ तत्त्वात्मक होने का उल्लेख, पुरुष के २५ होने का उल्लेख ), स्कन्द १.२.४६.५४( अनादि, अजर, अमर प्रकृति से कालान्तर में सत्त्व, रज, तम नामक त्रिगुणात्मक प्रकृति के उद्भव का कथन ), १.२.४६.९०( स्ववर्णोदित कर्मों के द्वारा प्रकृति के शोधन का निर्देश ), १.२.६५.१०( भीम द्वारा प्रकृति/शक्ति की निन्दा ), ६.२४२.३२( शिल्पी, नर्तक आदि १८ प्रकृतियों के नाम ), महाभारत शान्ति ३०४( अज्ञानी के प्रकृति की १६ कलाओं में जन्म लेने तथा १६वीं कला के सूक्ष्म व सोम होने का कथन ), ३०५( २४ तत्त्वों से युक्त गुणात्मक प्रकृति तथा २५वें निर्गुण तत्त्व पुरुष का कथन ), ३०७.११( प्रकृति व पुरुष के क्षर तथा अक्षर दोनों होने के कारणों का निरूपण ), ३०७.१६( क्षेत्रज्ञ को क्षेत्र में लीन करने अथवा गुणों को गुणों में लीन करने पर प्रकृति के क्षर बनने का कथन ), ३१५, ३४०.३५( ८ प्रकृतियों का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ६.२.८५( प्रकृति - पुरुष क्रम वर्णन नामक सर्ग में प्रकृति द्वारा पुरुष को प्राप्त कर लेने पर शान्त होने का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.२०५.५१( मूल प्रकृति के राधा, लक्ष्मी, विवाहिता कन्या आदि ६ स्वरूपों का कथन ), ४.१०१.१२४( कृष्ण की ११२ पत्नियों में से एक, कृतिमान व यत्नेश्वरी - माता ), द्र. पुरुष – प्रकृति prakriti

 

प्रकृति - पुरुष अग्नि १७.२( ब्रह्मा द्वारा अव्यक्त प्रकृति, पुरुष व विष्णु में प्रवेश कर क्षोभ उत्पन्न करने व सृष्टि उत्पन्न करने का कथन ), भागवत ३.२७( प्रकृति व पुरुष के विवेक से मोक्ष प्राप्ति : देवहूति - कपिल संवाद ), ११.२२.१( कृष्ण - उद्धव संवाद में पुरुष - प्रकृति के सम्बन्ध पर विभिन्न दृष्टिकोणों से विचार करने पर तत्त्वों की संख्या में परिवर्तन का विवेचन ), ११.२२.२६( कृष्ण द्वारा उद्धव हेतु प्रकृति व पुरुष में भेद - अभेद की विवेचना ), मार्कण्डेय ४३.४/४६.४( अव्यक्त स्थिति में प्रकृति व पुरुष के साधर्म्य या समत्व से स्थित होने का कथन ), ४३.९/४६.९( जगत्पति के प्रकृति व पुरुष में प्रवेश कर क्षोभ उत्पन्न कर सृष्टि उत्पन्न करने का कथन ), वराह ७२( प्रकृति - पुरुष निर्णय नामक अध्याय में ब्रह्मा - विष्णु - महेश का वर्णन ), शिव २.१.६.५८( प्रकृति से उत्पन्न २५ महत् आदि तत्त्वों के पुरुष के बिना जड होने का कथन ), ४.२२.४( निर्गुण शिव से प्रकृति व पुरुष की उत्पत्ति तथा तप का वृत्तान्त ), महाभारत शान्ति ३१८.३९( मित्र के पुरुष व वरुण के प्रकृति होने का वर्णन ), योगवासिष्ठ ६.२.८५.१९( प्रकृति के पुरुष से योग होने की स्थिति का कथन, पुरुष से सम्पर्क होने पर घोर प्रकृति का सौम्य प्रकृति में रूपान्तरण होने का वर्णन ) prakriti - purusha

 

प्रघस ब्रह्माण्ड १.२.३६.७५( प्रघास : लेखा संज्ञक देवगण में से एक ), मत्स्य २४५.३२( बलि के सेनापति दैत्यों में से एक ), वराह ९३.९( महिषासुर - मन्त्री, वैष्णवी देवी के संदर्भ में मन्त्रणा ), वामन ५७.६९( घस : वायु  द्वारा कुमार को प्रदत्त गण ), स्कन्द १.१.१३.२८( प्रघस का निर्ऋति से युद्ध ), वा.रामायण ५.४६.३५( प्रघस राक्षस का प्रमदावन में हनुमान से युद्ध व मृत्यु ), ६.४१.४१( प्रघस वानर द्वारा लङ्का के पश्चिम् द्वार पर हनुमान की सहायता ), ६.४३.१०( रावण - सेनानी, सुग्रीव से युद्ध ), ७.५.४१( सुमाली व केतुमती - पुत्र ), ५.२४.४१( प्रघसा राक्षसी द्वारा अशोकवाटिका में सीता को भय दिखाना ) praghasa

 

प्रघोष गर्ग ७.३०.११( कृष्ण व लक्ष्मणा - पुत्र, प्रद्युम्न - सेनानी, कलङ्क राक्षस पर विजय ), १०.६१.१५( कृष्ण व माद्री/लक्ष्मणा के पुत्रों में से एक ) praghosha

 

प्रचण्ड गणेश १.४३.१( त्रिपुर व शिव के युद्ध में प्रचण्ड के षण्मुख से युद्ध का उल्लेख ), २.७६.१२( सिन्धु व गणेश के युद्ध में प्रचण्ड का वरुण से युद्ध ), गर्ग १०.२४.२१( अनुशाल्व के मन्त्री प्रचण्ड द्वारा यादव वीर भानु को पराजित करना, साम्ब द्वारा प्रचण्ड का वध ), मत्स्य १३.४३( छागलाण्ड तीर्थ में सती के प्रचण्डा नाम से वास का उल्लेख ), स्कन्द ५.१.१९.२( चण्ड व प्रचण्ड द्वारा गौरी के हरण के प्रयत्न पर चण्डी द्वारा शिव की आज्ञा से दानव - द्वय के वध का कथन ), ५.३.१९८.८०( छागलिङ्ग तीर्थ में उमा देवी की प्रचण्डा नाम से तथा अमरकण्टक में चण्डिका नाम से स्थिति का उल्लेख ) prachanda

 

 

प्रचेता अग्नि १८.२२( प्राचीनबर्हि व सवर्णा सामुद्री से उत्पन्न प्रचेता संज्ञक १० पुत्रों द्वारा प्रजापतित्व पद की प्राप्ति, मारिषा से विवाह आदि का वृत्तान्त ), गरुड १.१३५.५( एकादशी को पूजनीय ९ ऋषियों में से एक प्रचेता का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.३( प्रचेता के मन से गौतम की उत्पत्ति का उल्लेख ), १.२२.३( धाता के चेतस् से उत्पत्ति के कारण प्रचेता नामकरण का उल्लेख ), २.५१.१९( सुयज्ञ नृप द्वारा अतिथि के तिरस्कार पर प्रचेताओं द्वारा व्यक्त प्रतिक्रिया ), ४.३०.५२( प्रचेता द्वारा ब्रह्मा से प्राप्त शिव स्तोत्र को पुत्र असित को देने का उल्लेख ; असित द्वारा स्तोत्र से शिव को प्रसन्न करने तथा पुत्र प्राप्त करने का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड १.२.१२.२९( ८ विहरणीय संज्ञक धिष्ण्य अग्नियों में से एक, अन्य नाम प्रशान्त ), १.२.१३.३९( १० प्रचेतागण के सवर्णा व प्राचीनबर्हि पुत्र होने तथा स्वायम्भुव दक्ष के प्रचेताओं का पुत्र बनने का वृत्तान्त ), १.२.३२.१०४( १३ मन्त्रवादी भार्गव ऋषियों में से एक ), १.२.३६.१३( पारावत देवगण के १२ देवों में से एक ), १.२.३६.७०( प्रसूत संज्ञक देवगण के अन्तर्गत प्रचेता व सुप्रचेता नामक देवों का उल्लेख ), १.२.३६.७५( लेखा संज्ञक देवगण में से एक ), १.२.३७.२७( सवर्णा व प्राचीनबर्हि के प्रचेतस संज्ञक १० पुत्रों के तप का वृत्तान्त, मारिषा से दक्ष पुत्र को उत्पन्न करने का वृत्तान्त ), २.३.१.५४( प्रजापतियों में से एक ), २.३.७४.११( दुर्दम - पुत्र, १०० म्लेच्छ राष्ट} अधिपतियों के पिता, द्रुह्यु वंश ), भविष्य ३.३.२०.१८( वरुण का नाम ), ३.४.१६.३( ब्रह्मा द्वारा १० प्रचेतागण का स्थापन ), ३.४.२५.२८( ब्रह्मा की उत्तर बाहु से प्रचेता व प्रचेता से कर्मकल्प की उत्पत्ति का उल्लेख ), ३.४.२५.१४०( अव्यक्त की प्रधान मह से उत्पत्ति ), ४.८५.२६( वाल्मीकि का उपनाम?, पुष्पवाहन से संवाद, विभूति द्वादशी महिमा का वर्णन, प्रचेता मुनि द्वारा राजा पुष्पवाहन व उसकी रानी को पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन ),भागवत ४.२४.१३( प्राचीनबर्हि व शतद्रुति - पुत्र, पश्चिम् दिशा में तप तथा रुद्र द्वारा विष्णु स्तोत्र का उपदेश ), ४.३०( प्रचेताओं द्वारा जल में तप, विष्णु द्वारा वरदान, प्रचेताओं द्वारा विष्णु की स्तुति, मारिषा से परिणय, दक्ष पुत्र का जन्म ), ४.३१( नारद द्वारा प्रचेताओं को उपदेश, प्रचेताओं द्वारा परमपद का लाभ ), ६.४.४( प्रचेताओं द्वारा क्रोध से वृक्षों को जलाना, चन्द्रमा द्वारा शान्ति वचन, मारिषा से विवाह, दक्ष का जन्म ), ९.२३.१५( दुर्मना - पुत्र, म्लेच्छों के अधिपति १०० पुत्रों के पिता, द्रुह्यु वंश ), मत्स्य ३.७( ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक ), ४.४७( प्राचीनबर्हि व सवर्णा सामुद्री से प्रकट १० प्रचेता पुत्रों के तप, विवाह आदि का संक्षिप्त कथन ), १३.१५( दक्ष - पुत्री सती द्वारा दक्ष को जन्मान्तर में दश पिताओं का एकमात्र पुत्र बनने का शाप ), ४८.८( घृत - पुत्र, १०० म्लेच्छ राष्ट्राधिपों का पिता, द्रुह्यु वंश ), ५१.२५( प्रचेता अग्नि का संसहायक उपनाम ), १००.७( प्राचेतस मुनि द्वारा राजा पुष्पवाहन को उसके पूर्वजन्म के वृत्तान्त का कथन, पूर्व जन्म के वृत्तान्त के रूप में विभूति द्वादशी व्रत की महिमा का वर्णन ), १०२.१९( तर्पण प्राप्त करने योग्य ऋषियों में से एक ), १४५.९८( १३ मन्त्रकार भार्गव ऋषियों में से एक ), वराह २१.१७( दक्ष यज्ञ में प्रचेता के प्रतिहर्ता बनने का उल्लेख ), वायु ३०.६०, ३०.७४( चाक्षुष मन्वन्तर में दक्ष के १० प्रचेता - पुत्रों के रूप में जन्म लेने तथा नष्ट होने का कथन ), ६३.२६/२.२.२६( प्रचेताओं द्वारा वृक्षों को जलाने व मारिषा से विवाह की कथा ), ६९.११/२.८.११( प्रचेता व सुयशा से उत्पन्न यक्ष पुत्रों व अप्सराओं के नाम ), विष्णु १.१४.६( प्रचेतागण : प्राचीनबर्हि व सवर्णा - पुत्र, प्रजा वृद्धि हेतु तप, गोविन्द की स्तुति ), १.१५.१( प्रचेताओं द्वारा वृक्षों को जलाना, मारिषा से विवाह, दक्ष पुत्र की उत्पत्ति ), विष्णुधर्मोत्तर १.११०.२( प्राचीनबर्हि व सुवर्णा से उत्पन्न १० प्राचेतसों द्वारा तप करने, मुखाग्नि से वृक्षों को जलाने तथा सोम - कन्या मारिषा से विवाह कर दक्ष प्रजापति को जन्म देने का कथन ), ३.३२१.७( तीर्थ यात्रा से प्रचेताओं के लोक की प्राप्ति का उल्लेख ), शिव ७.१.१७.५६( प्राचीनबर्हि व सवर्णा के १०० पुत्रों का कथन ), हरिवंश १.२.३५( प्राचीनबर्हि व सवर्णा - पुत्र, वृक्षों को जलाना, मारिषा से परिणय ), वा.रामायण ७.९६.१९( वाल्मीकि का प्रचेतस/वरुण? के १०वें पुत्र के रूप में उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३९.२०( सावर्णि व सामुद्री के १० प्रचेतस पुत्रों की प्राचीनबर्हि संज्ञा, दक्ष - पिता ), १.३१८.८४( रुद्र व सती - पुत्री वम्री का वृक्षों की कन्याओं के रूप में दशधा उत्पन्न होकर १० प्रचेताओं की पत्नियां बनने का वृत्तान्त ) prachetaa

 

प्रचेष्ट पद्म ७.५.१५८( माधव राजकुमार के भृत्य प्रचेष्ट द्वारा माधव - प्रिया सुलोचना का हरण, सुलोचना का पलायन ), ७.६.४७( प्रचेष्ट द्वारा प्राण त्याग हेतु गङ्गासागर सङ्गम पर आगमन, पुरुष वेश धारी सुलोचना द्वारा प्रचेष्ट को कारागृह में भेजना ) pracheshta

 

प्रजङ्घ वा.रामायण ६.४३.७( रावण - सेनानी प्रजङ्घ का सम्पाती वानर से युद्ध ), ६.७६.२७( अङ्गद द्वारा प्रजङ्घ का वध ) prajangha

 

प्रजन मत्स्य ५०.२३( कुरु के ४ पुत्रों में से एक ), १६१.८१( हिरण्यकशिपु की सभा में आसीन असुरों में से एक ), वायु ८६.४/२.२४.४( प्रजानि : प्रांशु - पुत्र, खनित्र - पिता, इक्ष्वाकु वंश ) prajana

 

प्रजा देवीभागवत ६.११.११( चतुर्युगों में युग विशेष के धर्म, अर्थ व काम के अनुसार प्रजा की स्थिति का वर्णन ), पद्म ७.१३.९६( प्रजा ब्राह्मण द्वारा शिव की स्तुति, जाति ज्ञान की प्राप्ति, पूर्व जन्म में दण्डपाणि शबर, ब्राह्मण को पद्म दान से ब्राह्मण जन्म की प्राप्ति ), ब्रह्माण्ड १.२.३२.३( ४ युगों में अङ्गुलि परिमाण व उच्छ्राय ), १.२.३३.१६( प्रजादर्प : मध्यमाध्वर्युओं में से एक ), १.२.३७.२४( प्रज : हविर्धान व आग्नेयी धिषणा के ६ पुत्रों में से एक ), २.३.१२.३२( पिण्ड दान के संदर्भ में प्रजार्थी को मध्यम पिण्ड अग्नि में देने का निर्देश ), भागवत ४.२१.२१( पृथु द्वारा प्रजा को उपदेश ), वामन ९०.२८( प्रजामुख में विष्णु का वासुदेव नाम ), विष्णु १.७.१३( प्रजा की वृद्धि न होने पर ब्रह्मा द्वारा अर्धनारी वपु वाले रुद्र को उत्पन्न करना, अशान्त भाग के स्त्री रूप होने का उल्लेख ), १.७.३७( दक्ष, मरीचि, अत्रि आदि के नित्य सर्ग के प्रजेश्वर होने का उल्लेख ), स्कन्द ५.१.४३.१७( ब्राह्मणों के प्रजाओं का मूल तथा वेदों के ब्राह्मणों का मूल होने का उल्लेख ), ५.३.५६.११८( तिल दान से इष्ट प्रजा की प्राप्ति का उल्लेख ), महाभारत अनुशासन १४.२३३( सारी प्रजा के पार्वती के भग व शिव के लिङ्ग चिह्नों से युक्त होने का कथन ), ४०.५( प्रजा के मोहनार्थ ब्रह्मा द्वारा स्त्री, काम व क्रोध की सृष्टि का कथन ) prajaa

 

प्रजाति मार्कण्डेय ११४.७/११७.७( प्रांशु - पुत्र प्रजाति के यज्ञ की प्रशंसा, प्रजाति - पुत्र खनित्र का वृत्तान्त ), वायु ३१.६( याम संज्ञक १२ देवों में से एक ),

 

प्रजापति अग्नि २४.४९( द्यावापृथिवी रूपी शकल के मध्य प्रजापति के जन्म का उल्लेख ), देवीभागवत ५.८.६८( प्रजापति के तेज से देवी के दन्तों की उत्पत्ति का उल्लेख ), पद्म १.४०.५४( ब्रह्मा द्वारा भू, भुव:, स्व नामक तीन पुत्रों तथा धर्म व सप्तर्षियों आदि प्रजापतियों को उत्पन्न करने का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त १.२२( ब्रह्म की देह के विभिन्न अङ्गों से नारद, प्रचेता आदि की सृष्टि का वर्णन ), ब्रह्माण्ड १.२.७.१६५( ब्राह्मणों को प्राजापत्य स्थान प्राप्त होने का उल्लेख ), भविष्य २.१.१७.६( वास्तु याग आदि में अग्नि का नाम ), भागवत २.३.२( प्रजाकामी के लिए प्रजापति की आराधना का  निर्देश ), २.६.७( विराट् पुरुष का शिश्न पर्जन्य? प्रजापति का होने का उल्लेख ), ५.२३.५( शिशुमार की लाङ्गूल/पुच्छ - मध्य में प्रजापति आदि की स्थिति का उल्लेख ), ७.८.४९( हिरण्यकशिपु के वध पर प्रजापतियों द्वारा नृसिंह की स्तुति का श्लोक ), ७.१२.२६( रति व उपस्थ को प्रजापति में लीन करने का निर्देश ), मत्स्य ४.८( भारती व प्रजापति के युगल का उल्लेख ), ८.४( पृथु द्वारा दक्ष को प्रजापतियों का अधिपति नियुक्त करने का उल्लेख ), १०१.६६( प्राजापत्य व्रत की संक्षिप्त विधि ), १०४.५( प्रयाग में प्रतिष्ठान से लेकर वासुकि ह्रद तक प्रजापति क्षेत्र की स्थिति का उल्लेख ), १६३.८८( हिरण्यकशिपु के कारण प्रजापति गिरि के कम्पन का उल्लेख ), वायु २१.५३/१.२१.४८( २३वें चिन्तक संज्ञक कल्प में प्रजापति - पुत्र चिति का कथन ), ६५.५२/२.४.५२( कर्दम, कश्यप आदि १२ प्रजापतियों के नाम ), विष्णु ४.१.२३( प्रांशु - पुत्र, खनित्र - पिता, अन्य पुराणों में नाम प्रजानि, प्रजाति ), शिव ७.२.३८.३६( प्राजापत्य ऐश्वर्य के अन्तर्गत सिद्धियों के नाम ), स्कन्द ५.३.१३.४२( १४ कल्पों में द्वितीय कल्प के रूप में प्राजापत्य कल्प का उल्लेख ), ५.३.५१.३४( पुष्पों के ७ प्रकारों में प्राजापत्य पुष्प के रूप में पाठाद्य का उल्लेख ), ६.२५२.२०( चातुर्मास में प्रजापतियों की चूत वृक्ष में स्थिति का उल्लेख ),हरिवंश १.४, ३.३६.६( हिरण्यगर्भ प्रजापति / ब्रह्मा से क्रमश: ओम्, वषट्कार, व्याहृतियों, सावित्री आदि के प्रकट होने का वर्णन ), ३.७१.५०( वामन के विराट् रूप में प्रजापति के वृषण - द्वय बनने का उल्लेख ), महाभारत शान्ति २०८.७( प्राचेतस - पुत्र दक्ष, मरीचि - पुत्र कश्यप, शशबिन्दु आदि का प्रजापतियों के रूप में कथन ), अनुशासन १०२.४०( प्राजापत्य लोक को प्राप्त करने वाले मनुष्य के लक्षण ), वा.रामायण ३.१४.७( कर्दम से लेकर कश्यप तक १७ प्रजापतियों के नाम, कश्यप प्रजापति की सन्तानों का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.१०८.२( विश्वरूप प्रजापति द्वारा स्व कन्याओं सिद्धि व बुद्धि को गणेश को  प्रदान करने का कथन ), ३.४५.१७( प्रजापति याजकों द्वारा दक्ष आदि प्रजापतियों के लोक की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१०१.७२( अनड्वाह या महा उक्षा के दान से प्रजापति के लोक की प्राप्ति का उल्लेख ), prajaapati/prajapati

 References on Prajapati