puurnamaasa-prithu

पूर्णमास गर्ग ७.२८.२६( कृष्ण व कालिन्दी - पुत्र, प्रद्युम्न - सेनानी , वीरधन्वा को पराजित करना ), ब्रह्माण्ड १.२.११.११( मरीचि व सम्भूति की सन्तानों में से एक, पूर्णमास द्वारा सरस्वती से उत्पन्न २ पुत्रों के नाम ), २.३.७.१३०( देवजननी व मणिवर के यक्ष - गुह्यक पुत्रों में से एक ), भागवत १०.६१.१४( कृष्ण व कालिन्दी के १० पुत्रों में से एक ), वायु २८.८( मरीचि व सम्भूति की सन्तानों में से एक, पूर्णमास द्वारा सरस्वती से उत्पन्न २ पुत्रों के नाम ), ६९.१६१/२.८.१५६( देवजननी व मणिवर के यक्ष - गुह्यक पुत्रों में से एक ), द्र. दर्शपूर्णमास poornamaasa/ purnamasa

 

पूर्णमुख वराह १२६.४२(कुब्जाम्रक तीर्थ के अन्तर्गत पूर्णमुख तीर्थ के महत्त्व का कथन )

 

पूर्णा अग्नि ६५.१८( सभागृह स्थापन के संदर्भ में अङ्गिरस - पुत्री पूर्णा से पूर्णकाम करने की प्रार्थना का उल्लेख ), ब्रह्म २.५२.१( गौतमी गङ्गा के उत्तर तट पर पूर्ण तीर्थ में स्नान आदि के माहात्म्य के संदर्भ में इन्द्र द्वारा पूर्ण तीर्थ में अभिषेक से सुकृतों को पूर्ण करने का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड ३.४.३५.९२( चन्द्रमा की कलाओं के नामों में पूर्णा व पूर्णामृता का उल्लेख ) poornaa/ puurnaa/ purna

 

पूर्णामल भविष्य ३.३.३१.१३६( पट्टन पुर का राजा, वसुओं की आराधना से १० पुत्र व एक कन्या की प्राप्ति ), ३.३.३२.४३( कलियुग में कौरवों का पूर्णामल - पुत्रों के रूप में उत्पन्न होना, पुत्रों  के नाम ), ३.३.३२.१६३( पूर्णामल का पृथ्वीराज - सेनानी मूलवर्मा से युद्ध व मृत्यु ) poornaamala/ purnamala

 

पूर्णासन लक्ष्मीनारायण २.२१५.१५( राजा कालमण्डली के साथ पूर्णासन ऋषि का उल्लेख ), २.२१६.१९( वही)

 

पूर्णाहुति नारद १.५१.४७( पूर्णाहुति के पुरुष रूपी अग्नि के श्रोत्र रूप होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१७१.८( पूर्णाहुति विधि )

 

 पूर्णिमा अग्नि १२१.६२( महाज्येष्ठी पूर्णिमा काल का विचार ), १९४( विभिन्न मासों में पूर्णिमा व्रतों के नाम ), २९०( आश्विन् शुक्ल पूर्णिमा : अश्व शान्ति कर्म ), गणेश १.४८.३( बहुला पूर्णिमा को त्रिपुर का वध ), गरुड १.१२१( आषाढ पूर्णिमा : चातुर्मास्य व्रत ), गर्ग २.१६.२६( पूर्णिमा को तुलसी सेवन व्रत ), ५.२०.२( कार्तिक पूर्णिमा को राधा - कृष्ण रासोत्सव ), ६.१४.२( वैशाख पूर्णिमा : समुद्र की पूजा ), १०.७.४२( चैत्र पूर्णिमा को अश्वमेधीय हय का मोचन ), देवीभागवत ९.१२.२०( कार्तिक पूर्णिमा को गङ्गा के जन्म का कथन ), ९.२६.३४( कार्तिक पूर्णिमा को तुलसी जन्म का उल्लेख ), ९.५०.४२( कार्तिक पूर्णिमा को राधा जन्मोत्सव का निर्देश ), नारद १.१८( मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत व उद्यापन विधि ), १.१२४( पूर्णिमा तिथियों  में व्रत विशेषों का वर्णन ), २.२३.७०( पूर्णिमा को आज्य का वर्जन ), २.४३.२९( वैशाख पूर्णिमा : शिव पूजा विधि ), २.५६.२३( ज्येष्ठ पूर्णिमा को पुरुषोत्तम तीर्थ की यात्रा के फल का कथन ), २.६०.८( ज्येष्ठ पूर्णिमा को पुरुषोत्तम क्षेत्र की यात्रा, कृष्ण, बलराम व सुभद्रा का अभिषेक उत्सव ), २.७१.२८( कार्तिक पूर्णिमा  को भरणी, कृत्तिका आदि नक्षत्रों की स्थिति के अनुसार आकाश पुष्कर, मध्य पुष्कर, कनिष्ठ पुष्कर आदि में स्नान के नियम का कथन ), पद्म १.७.८( दिति द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु चीर्णित ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा व्रत की विधि का वर्णन ), १.१८.२१२( कार्तिक तथा वैशाख पूर्णिमा ? को मध्यम व कनिष्ठ पुष्कर में स्नान आदि के महत्त्व का कथन ), ४.१६.२२( आश्विन् पूर्णिमा का माहात्म्य : आश्विन् पूर्णिमा को सर्प द्वारा श्रीहरि को लाजा, वराटिका प्रस्तुत करने पर सर्प की मुक्ति का वृत्तान्त ), ५.९.४( वैशाख पूर्णिमा को राम के हयमेध अश्व के मोचन का कथन ), ५.३६.३२( मार्गशीर्ष पूर्णिमा : हनुमान के लङ्का से पुनरागमन का उल्लेख ), ६.८५.१( वैशाख पूर्णिमा से जलशायी विष्णु महोत्सव का आरम्भ ), ६.२१९.३२( माघ पूर्णिमा को विष्णु द्वारा पुण्डरीक द्विज को इन्द्रप्रस्थ में स्थित पुष्कर में स्नान कराने का वृत्तान्त ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१०.११६(कार्तिक पूर्णिमा को गङ्गा की उत्पत्ति का उल्लेख), २.२७.८९( कार्तिक पूर्णिमा को गोप - गोपी रास का माहात्म्य ), ब्रह्माण्ड १.२.२८.३८( चन्द्र व सूर्य की स्थितियों के अनुसार राका व अनुमति पूर्णिमाओं के काल का निर्धारण ), ३.४.३१.१२( षोडश पत्राब्ज पर स्थित शक्तियों में से एक ), भविष्य २.२.८.११६( विभिन्न मासों में महापूर्णिमा कालों का निर्धारण, विभिन्न तीर्थों में विभिन्न पूर्णिमाओं के विशेष फलों का कथन ), ३.४.८.५२( भाद्रपद पूर्णिमा को सूर्य का विष्णुशर्मा द्विज रूप में जन्म लेना ), ४.९९.२( पूर्णिमा को सोम का देवों के साथ जय नामक सङ्ग्राम होने का उल्लेख ), ४.९९.४८( पूर्णिमा को चन्द्रमा द्वारा बुध पुत्र की प्राप्ति ; पूर्णिमा को सोम पूजा की विधि ), ४.१००( वैशाख, कार्तिक, माघ पूर्णिमाओं को स्नान, तर्पण, दान का कथन, भरत द्वारा निर्दोषता की शपथ ), ४.१०४( पूर्णमनोरथ व्रत के अन्तर्गत विभिन्न मासों की पूर्णिमाओं को विष्णु रूपी चन्द्रमा की विभिन्न नामों से अर्चना का निर्देश ; प्रतिमास कायशुद्धि हेतु प्राशन द्रव्य का उल्लेख ), ४.१०५( धरणी द्वारा फाल्गुन आदि पूर्णिमाओं को चीर्णित अशोक पूर्णिमा व्रत की विधि ), ४.१२१.३१( पूर्णिमा व्रत की संक्षिप्त विधि ), ४.१३२( फाल्गुन उत्सव, रघु के नगर को ढोण्ढा राक्षसी से त्रास व उपाय ), ४.१३७.१०( श्रावण पूर्णिमा को रक्षाबन्धन विधि ), भागवत ४.१.१३( मरीचि व कला - पुत्र, विरज आदि सन्तान ), मत्स्य ५३.३( वैशाख पूर्णिमा को ब्रह्मपुराण दान का निर्देश ), ५३.१५( ज्येष्ठ पूर्णिमा को पद्म पुराण के दान का निर्देश ), ५३.१७( आषाढ पूर्णिमा को विष्णु पुराण दान का निर्देश ), ५३.१९( श्रावण पूर्णिमा को वायु पुराण दान का निर्देश ), ५३.२२( भाद्रपद पूर्णिमा को भागवत पुराण दान का निर्देश ), ५३.२४( आश्विन् पूर्णिमा को नारद पुराण दान का निर्देश ), ५३.२७( कार्तिक पूर्णिमा को मार्कण्डेय पुराण दान का निर्देश ), ५३.३५( माघ पूर्णिमा को ब्रह्मवैवर्त्त पुराण दान का निर्देश ), ५३.३७( फाल्गुन पूर्णिमा को लिङ्ग पुराण दान का निर्देश ), ५३.४०( चैत्र पूर्णिमा को वराह पुराण आदि के दान का निर्देश), १२०.४२( फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा : पुरूरवा द्वारा स्वप्न दर्शन, अत्रि से भेंट ), १४१.३८( राका व अनुमति पूर्णिमा का अर्थ), १४१.५५( पूर्णिमा के चन्द्रमा में षोडशी कला का अभाव होने के कारण चन्द्रमा के क्षय होने का कथन ), १९५.२८ (पूर्णिमागतिक : भार्गव कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक ), वराह ३५.१( सोम को ब्रह्मा से पौर्णमासी तिथि प्राप्त होने का उल्लेख ), वायु २१.५६( २७वें भाव कल्प की देवी पूर्णमासी व ब्रह्मा के मिथुन से सूर्य देव की मण्डल सहित उत्पत्ति ; पूर्णमासी के नाम के कारण का कथन : ब्रह्मा परमेष्ठी का मन से पूर्ण होना ), ५६.३६( पूर्णिमा काल का निरूपण ), ५६.३८( पूर्णिमा के राका, अनुमति नाम का कारण ), ५६.४१( चन्द्र व अर्क के परस्पर ईक्षण से पूर्णिमा घटित होने का कथन ?), विष्णुधर्मोत्तर १.६०.१७( महत्पूर्वा नामक पूर्णिमा के साल व महत्त्व का कथन), ३.१९२( मास नक्षत्र पौर्णमासी व्रत की विधि व माहात्म्य ), ३.१९३( कार्तिक पूर्णिमा व्रत की विधि ), ३.१९५( भाद्रपद पूर्णिमा से आरम्भ होने वाले वरुण व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य ), ३.१९६( आश्विन् पूर्णिमा को शक्र व्रत की विधि व माहात्म्य ), ३.१९७( पूर्णिमा को ब्रह्मकूर्च व्रत की विधि ), ३.२१६( सुगति पौर्णमासी कल्प के अन्तर्गत विभिन्न मासों की पूर्णिमा व्रत की विधि व प्राशन/भोजन विधान ), ३.३१९( पूर्णिमा को दान द्रव्य ), शिव ४.१५.१८( पूर्णिमा को पार्वती व अमावास्या को शिव का क्रौञ्च पर्वत पर स्कन्द के दर्शन हेतु जाने का उल्लेख ), स्कन्द १.३.२.२०.२६+( कार्तिक पूर्णिमा को पार्वती द्वारा द्रष्ट शोणाद्रीश पूजा का माहात्म्य ), २.२.४४.१( फाल्गुन पूर्णिमा को सांवत्सर व्रत विधान ), २.७.२५.१(वैशाख की पूर्णिमान्त तीन तिथियों में स्नानादि का माहात्म्य ), २.८.३.४१( ज्येष्ठ पूर्णिमा को चन्द्र हरि व्रत का वर्णन ), ५.१.१०.५( आश्विन् पूर्णिमा को शिव के पट्टबन्ध के दर्शन से विपाप्मा होने का उल्लेख ), ५.१.४८.५१( वैशाख पूर्णिमा को शिव को शिप्रा में स्नान कराने के सत्फल का कथन ),५.३.५१.५( आषाढ, कार्तिक, फाल्गुन, चैत्र, ज्येष्ठ पूर्णिमाओं के मन्वन्तरादि तिथियां होने तथा अनन्त फलदा होने का उल्लेख ), ६.४५.५( कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुष्कर स्नान का माहात्म्य, कार्तिक पूर्णिमा को ज्येष्ठ पुष्कर में कमल में अङ्गुष्ठ मात्र पुरुष के दर्शन होने का वृत्तान्त ), ६.९२.३( कार्तिक पूर्णिमा को भीष्म पञ्चक व्रत का चीर्णन करके ब्रह्मकुण्ड में स्नान का माहात्म्य :  पशुपाल शूद्र का जन्मान्तर में ब्राह्मण बनना ), ६.१११.२५( कार्तिक पूर्णिमा को दमयन्ती द्वारा दान, ब्राह्मणों के शाप से शिला बनना ), ६.१५५.१६( आश्विन् पूर्णिमा : अश्विनौ की पूजा का कथन ), ७.१.१३१.२०( आश्विन् पूर्णिमा : ध्रुवेश्वर लिङ्ग की पूजा के फल का उल्लेख), ७.१.१६५.१७१( ज्येष्ठ पूर्णिमा : सावित्री स्थल के निकट ब्रह्मसूक्त पठन का निर्देश ), ७.१.१६६.७१( ज्येष्ठ पूर्णिमा को सावित्री द्वारा चीर्णित व्रत की विधि का वर्णन ), ७.१.१७०( श्रावण पूर्णिमा : मातृगण की पूजा का उल्लेख ), ७.१.१७१( कार्तिक पूर्णिमा को दशरथेश्वर लिङ्ग की पूजा के महत्त्व का कथन ), ७.१.१७२( कार्तिक पूर्णिमा को भरतेश्वर लिङ्ग की पूजा के महत्त्व का कथन ), ७.१.१७४( कार्तिक पूर्णिमा को कुन्तीश्वर लिङ्ग की पूजा के माहात्म्य का कथन ), ७.१.१७७( कार्तिक पूर्णिमा को लकुलीश की पूजा के महत्त्व का कथन ), ७.१.२३२.१९( ज्येष्ठ पूर्णिमा : पाण्डव कूप में स्नान, श्राद्ध आदि के माहात्म्य का कथन ), ७.१.२८३.१३( आश्विन् पूर्णिमा : च्यवनेश्वर लिङ्ग की पूजा, सुकन्या - अश्विनौ आख्यान ), ७.३.६.१३( श्रावण पूर्णिमा : वसिष्ठ ऋषि के तर्पण आदि  का निर्देश ), ७.३.४९( कार्तिक पूर्णिमा : परशुराम तीर्थ में स्नान, श्राद्ध आदि के फल का कथन ), ७.३.५४.९( कार्तिक पूर्णिमा : त्रिपुष्कर में स्नान व दान क फल ), योगवासिष्ठ ६.१.८१.११५टीका(सूर्य द्वारा षोडशी कला को ग्रस्त करने के क्षण बद्धपद होने का कथन, प्राण व अपान के रूप में पूर्णिमा अमावास्या की व्याख्या), ६.१.१२६.५८( चित्त में पूर्ण ज्ञानोदय की पूर्णचन्द्रोदय से उपमा ), लक्ष्मीनारायण १.२८०.११९(पूर्णिमाओं का कथन, विधि, कार्तिक पूर्णिमा को दीपोत्सव विधि तथा त्रिपुरारि पूजन, मनु, भक्ति, स्कन्द आदि की पूजा का कथन ), २.११.४१( चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को कृष्ण का अन्न प्राशन संस्कार ), २.११७.९९( फाल्गुन पूर्णिमा को पवमान अग्नि की यज्ञभूमि आदि में प्रतिष्ठा का कथन ), २.१६२.१०२( माघ पूर्णिमा के माहात्म्य के संदर्भ में माघ पूर्णिमा को शतोढु के मूक पुत्र वोढु द्वारा कपिल से ज्ञान व सरस्वती से वाणी प्राप्त करने का वृत्तान्त ), २.२३३.२६( आश्विन् पूर्णिमा को श्रीकृष्ण के गोपियों के साथ रासोत्सव का वर्णन ), ३.१०३.९( पूर्णिमा को दान से चमत्कारी होने का उल्लेख ), ४.५६.८०( फाल्गुन पूर्णिमा को कृष्ण द्वारा कुट्टनी अनङ्गवल्ली तथा उसकी सखियों को मोक्षार्थ ले जाने का उल्लेख ), ४.१०१.११०( कृष्ण की ११२ पत्नियों में से एक, सुधाकर व चन्द्रकला - माता ) poornimaa/ puurnimaa/ purnima

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पूर्तगण्ड लक्ष्मीनारायण २.१६६.३३( गङ्गा व कृष्ण के ६० अपत्यों में से एक ), २.१६७.३१( पूर्तगण्ड ऋषि का गण्डक नृप के साथ यज्ञ में आगमन का उल्लेख ), २.१९०.९१( श्रीहरि का पूर्तगण्ड ऋषि के साथ गण्ड नृप के नगर लीशवन में आने का कथन ),

 

पूर्ति गरुड ३.२९.६८(कर्म पूर्ति काल में वासुदेव के ध्यान का निर्देश),

 

पूर्व ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८३( भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में पूर्वमारक का उल्लेख ), ३.४.२६.४८( वही), मत्स्य १४५.१०८( पूर्वातिथि : मन्त्रकार ६ आत्रेय ऋषियों में से एक ), २२७.४( याचित वस्तु के न लौटाने पर पूर्वसाहस नामक दण्ड का निर्देश ), वायु ६१.५८( पूर्वसंहिता के रूप में सामिका का कथन ), वा.रामायण ७.१, लक्ष्मीनारायण ४.८०.१८( राजा नागविक्रम के यज्ञ में पूर्वज विप्रों के सभासद बनने का उल्लेख ) poorva/purva

 

पूर्वचित्ति ब्रह्माण्ड १.२.२३.१८( पूर्वचित्ति अप्सरा की सूर्य रथ में स्थिति का कथन ), भागवत ५.२.३( राजा आग्नीध्र के पूर्वचित्ति अप्सरा पर आकृष्ट होने व उससे ९ पुत्र उत्पन्न करने का वर्णन ), ११.१६.३३( भगवान् के अप्सराओं में पूर्वचित्ति होने का उल्लेख ), द्र रथ सूर्य , विप्रचित्ति poorvachitti/ purvachitti

 

पूर्वाषाढा भागवत ५.२३.६( शिशुमार के लोचन में पूर्वाषाढा नक्षत्र की स्थिति का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २.८३( पूर्वाषाढा स्नान वर्णन नामक अध्याय में वाणिज्य शुद्धि व बहु कृषि प्राप्ति के उपायों का कथन ) poorvaashaadhaa/ purvashadha

 

पूषा अग्नि ८६.८( सुषुप्ति/विद्या कला की २ नाडियों में से एक ), ९३.११( वास्तु मण्डल के देवताओं में से एक ), कूर्म १.४३.१९( फाल्गुन मास में सूर्य का नाम व रश्मि संख्या का उल्लेख, माघ मास में वरुण ), गर्ग १.५.२७( पूषा के पाण्डु रूप में अंशावतरण का उल्लेख ), ब्रह्म २.९०.८ ( पूषा के नमुचि से युद्ध का उल्लेख? ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.१९.२६( पूषा सूर्य से जङ्घा की रक्षा की प्रार्थना ), ब्रह्माण्ड २.३.३.४२( रात्रि के १५ मुहूर्त्तों में से एक ), २.३.३.६८( कश्यप के पुत्र १२ आदित्यों में से एक ), ३.४.३५.९२( पूष्णा : चन्द्रमा की कलाओं में से एक ), भविष्य ३.४.८.११५( मार्गशीर्ष मास के सूर्य के माहात्म्य के संदर्भ में पूषा सूर्य के ज्योतिषी रूप में जन्म लेकर ज्योतिष का उद्धार करने का वृत्तान्त ), ३.४.१८.१८( संज्ञा विवाह प्रकरण में पूषा के प्रलम्ब से युद्ध का उल्लेख ), भागवत ४.५.१७( दक्ष यज्ञ में चण्डीश द्वारा पूषा के बन्धन का उल्लेख ), ४.५.२१( वीरभद्र द्वारा दक्ष यज्ञ में हंसने वाले पूषा के दांत तोडने का उल्लेख ), ४.७.४( दक्ष यज्ञ की पूर्ति के संदर्भ में पूषा द्वारा यजमान के दांतों से पिष्ट भक्षण का उल्लेख ), मत्स्य ६.४( १२ आदित्यों में से एक ), २४६.५८( वामन के विराट रूप में त्वष्टा व पूषा की भ्रुवों पर स्थिति का उल्लेख ), २५३.२५( ८१ पदीय वास्तुमण्डल के देवताओं में से एक ), २६८.१३( ८१ पदीय वास्तुमण्डल में पूषा देवता को लाजा देने का निर्देश ), वामन ५७.६६( पूषा द्वारा स्कन्द को प्रदत्त २ गणों के नाम ), वायु ५२.१२( शरद् ऋतु में सूर्य रथ पर पर्जन्य व पूषा आदित्यों की स्थिति का उल्लेख ) ६६.४३/२.५.४३( रात्रि के १५ मुहूर्त्तों में से एक ), ६६.६६/२.५.६६( कश्यप के १२ आदित्य पुत्रों में से एक ), विष्णु २.१०.११( आश्वयुज मास में सूर्य रथ में पूषा नामक आदित्य की स्थिति ), विष्णुधर्मोत्तर १.२३४.३( रुद्र द्वारा दक्ष यज्ञ में पूषा के दन्त नाश करने का उल्लेख ), शिव २.२.३७.५४( दक्ष यज्ञ में चण्ड द्वारा पूषा के दन्त तोडने का उल्लेख ), २.२.४१.४९( रुद्र से पूषा के दन्तों के रोहण करने की प्रार्थना ), स्कन्द ५.३.१९१.१५( प्रलय काल में पूषा सूर्य द्वारा अधो दिशा में शोषण का उल्लेख ), हरिवंश ३.५३.१०( पूषा का हयग्रीव असुर से युद्ध ), ३.५५.८८( देवासुर संग्राम में हयग्रीव दैत्य के पूषा देव से युद्ध व पूषा की पराजय का कथन ), महाभारत शान्ति १५.१९( पूषा आदि की अर्चना न होने का कारण ), कथासरित् ८.५.९६( वेत्रवान् : पूषा का अवतार, श्रुतशर्मा के ४ महारथियों में से एक ) pooshaa/pusha

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पृच्छा स्कन्द ५.२.१७.१६( महाकालवन में पृच्छा देवी के लिङ्ग के समीप अप्सरेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), योगवासिष्ठ ३.१०९.११( इन्द्रजाल के अन्तर्गत राजा लवण व चण्डाल - कन्या से उत्पन्न पुत्र पृच्छक द्वारा पिता का मांस खाने की तत्परता का कथन ) prichchhaa

 

पृथा ब्रह्माण्ड २.३.७१.१५०( शूर - पुत्र पृथा के कुन्ती नाम का कारण, देवों के अंश रूप ३ पुत्रों को उत्पन्न करने का कथन ), भागवत १.८.१७( उत्तरा के गर्भ की अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से रक्षा करने पर पृथा/कुन्ती द्वारा कृष्ण की स्तुति ), ९.२४.३१( शूर की ५ कन्याओं में से एक पृथा का कुन्तिभोज की दत्तक पुत्री बनने व दुर्वासा की कृपा से देवहूति विद्या प्राप्त करने व कर्ण को जन्म देने का वृत्तान्त ), १०.५८.८( कृष्ण से मिलने पर पृथा की प्रतिक्रिया ), मत्स्य ४६.४( शूर की ५ पुत्रियों में से एक पृथा के कुन्ति की दत्तक पुत्री बनने, पाण्डु से विवाह व पुत्रों को जन्म देने का कथन ), वायु ९६.१४९/२.३४.१४९( शूर की ५ पुत्रियों में से एक पृथा के कुन्ति की दत्तक पुत्री बनने, पाण्डु से विवाह व पुत्रों को जन्म देने का कथन ), विष्णु ४.१४.३१( शूर की ५ पुत्रियों में से एक पृथा के कुन्ति की दत्तक पुत्री बनने, पाण्डु से विवाह व पुत्रों को जन्म देने का कथन ) prithaa

 

पृथिवी अग्नि ४१.१९( पृथिवी पूजा की विधि ), २१३( पृथिवी कल्पन व दान की महिमा - .. उत्तमा कथिता पृथ्वी द्व्यंशेनैव तु मध्यमा ॥ कन्यसा च त्रिभागेन  त्रिहान्या कूर्मपङ्कजे । ), गरुड १.९८.९( प्रसूतकाला गौ का रूप - यावद्वत्सस्य द्वौ पादौ मुखं योन्यां प्रदृश्यते ॥ तावद्गौः पृथिवी ज्ञेया यावद्गर्भं न मुञ्चति ॥ ), गर्ग १.५.१७( स्त्रियों द्वारा पृथिवी दोहन पर मन:पात्र, मनोरथ दुग्ध का उल्लेख- मनोरथं प्रदुदुहुर्मनःपात्रेण ताश्च गाम् । तस्माद्‌गोप्यो भविष्यन्ति वृन्दारण्ये पितामह ॥ ), ७.२.२५( पृथिवी द्वारा प्रद्युम्न को पादुका भेंट का उल्लेख - क्षितिश्च पादुके प्रादाद्दिवे योगमये परे ॥ ), देवीभागवत ४.१८.२( २८वें कलि के भार से पीडित होकर पृथिवी का गो रूप धारण कर इन्द्र, ब्रह्मा, विष्णु आदि के पास जाना - केन वै पीडितासि त्वं किं ते दुःखं वसुन्धरे ॥ तच्छ्रुत्वेला तदोवाच शृणु देवेश मेऽखिलम् । ), ८.१०.६( पृथिवी द्वारा उत्तरकुरु वर्ष में वराह की आराधना - तथोत्तरेषु कुरुषु भगवान्यज्ञपूरुषः । आदिवाराहरूपोऽसौ धरण्या पूज्यते सदा ॥ ), ९.९( मधु -कैटभ के मेद से पृथिवी की उत्पत्ति, वराह -कृत पृथिवी की पूजा विधि,पृथिवी हेतु स्तोत्र - आदौ च पृथिवी देवी वराहेण च पूजिता । ततो हि ब्रह्मणा पश्चामृजिता पृथिवी तदा ॥ ), १२.६.१०६( पृथ्वी : गायत्री सहस्रनामों में से एक - पञ्चमात्रात्मिका पृथ्वी पथिका पृथुदोहिनी ।), पद्म १.३.३१( जल से उद्धार हेतु पृथिवी द्वारा वराह की स्तुति - निरीक्ष्य तं तदा देवी पातालतलमागतम् ।। तुष्टाव प्रणता भूत्वा भक्तिनम्रा वसुंधरा। ), १.८.१२( पृथु द्वारा पृथिवी का दोहन, दोग्धा व वत्स आदि का कथन - ततो गोरूपमास्थाय भूः पलायितुमुद्यता।। पृष्ठे त्वन्वगमत्तस्याः पृथुः सेषुशरासनः। ), १.४०.२( हिरण्मय पद्म रूपी पृथिवी का वर्णन - तच्च पद्मं पुराभूतं पृथिवीरूपमुत्तमम्। नारायणसमुद्भूतं प्रवदंति महर्षयः।।), २.२८.९३( पृथिवी द्वारा बीजों के ग्रसन पर पृथु द्वारा पृथिवी का पीछा, पृथिवी द्वारा कुञ्जर, महिष आदि रूपों का ग्रहण, अन्त में गौ रूप धारण का वृत्तान्त - इयं धात्री महाप्राज्ञा उप्तं बीजं पुरा किल ।जीवनार्थं प्रजाभिस्तु ग्रासयित्वा स्थिराभवत् ।। ), २.२९( पृथु द्वारा पृथिवी के दोहन का आख्यान ), ४.२४.२( पृथिवी दान का माहात्म्य - क्षितिं ससस्यां यो दद्याद्ब्राह्मणाय द्विजोत्तम । विष्णुलोके सुखं भुंक्ते यावदिंद्राश्चतुर्दश ।। ),  ६.३२.४( गौ व भूमि दान के महत्त्व का वर्णन - हिरण्यदानं गोदानं भूमिदानं च वासव । एतत्प्रयच्छमानस्तु सर्वपापैः प्रमुच्यते ।। ), ६.२४९.१( पृथिवी का सत्यभामा रूप में अवतरण - सत्राजितस्य तनया नाम्ना सत्या यशस्विनी ।पृथिव्यंशेन संभूता भार्यां कृष्णस्य वा परा ।।), ब्रह्म १.२.७०( पृथिवी रूपी गौ दोहन में वत्स, पात्र, दोग्धा आदि - ततो वैण्यभयत्रस्ता गौर्भूत्वा प्राद्रवन्मही।तां पृथुर्धनुरादाय द्रवन्तीमन्वधावत।।), ब्रह्मवैवर्त्त २.८( मधु - कैटभ के मेद से वसुधा के जन्म तथा वाराह द्वारा पृथिवी  पूजा की विधि का वर्णन - अहो केचिद्वदन्तीति मधुकैटभमेदसा ।। बभूव वसुधा धन्या तद्विरुद्धमतं शृणु ।। ), ४.४.१४( पृथिवी को पीडित करने वाले पापियों के पाप रूप भारों का कथन - कृष्णभक्तिविहीना ये ये च तद्भक्तनिंदकाः ।।तेषां महापातकिनामशक्ता भारवाहने ।।.. ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.१९९( पृथु द्वारा पृथिवी दोहन की कथा , दोहन में वत्स, दोग्धा आदि - न हि पूर्वनिसर्गे वै विषमे पृथिवीतले ।।प्रविभागः पुराणां वा ग्रामाणां वापि विद्यते ।। ), १.२.३७.१( पृथिवी के वसुधा, मेदिनी आदि नामों के कारण का कथन ; विभिन्न मन्वन्तरों में पृथिवी के दोहन के संदर्भ में दोग्धा व मनु रूपी वत्सों के नाम - आसीदिह समुद्रांता वसुधेति यथा श्रुतम् ।। वसु धत्ते यतस्तस्माद्वसुधा सेति गीयते ।। ), भविष्य ४.१५८.२( ..प्रसूयमाना द्विमुखी गौ के पृथ्वी का प्रतीक होने का कथन - गौर्यावद्द्विमुखी चैव यदा भवति भारत ।। तदासौ पृथिवी ज्ञेया सशैलवनकानना ।।.. ), ४.१६१.५०(जायमानस्य वत्सस्य मुखं योन्यां प्रदृश्यते ।। तावत्सा पृथिवी ज्ञेया यावद्गर्भं न मुंचति ।।), भागवत १.१६.२७( पृथिवी द्वारा एक पाद वाले वृषभ रूपी धर्म से स्व व्यथा का वर्णन - भवान् हि वेद तत्सर्वं यन्मां धर्मानुपृच्छसि ।चतुर्भिर्वर्तसे येन पादैर्लोकसुखावहैः ॥ ), ४.१७+ ( पृथु द्वारा पृथिवी का पीछा, देवों व असुरों द्वारा पृथिवी के दोहन का वर्णन - गौः सत्यपाद्रवद्‍भीता मृगीव मृगयुद्रुता ॥ तामन्वधावत्तद्वैन्यः कुपितोऽत्यरुणेक्षणः । ), ६.९.७( पृथिवी द्वारा इन्द्र से ब्रह्महत्या के अंश के ग्रहण का कथन - भूमिस्तुरीयं जग्राह खातपूरवरेण वै ॥ ईरिणं ब्रह्महत्याया रूपं भूमौ प्रदृश्यते । ), १०.५९.२५( नरकासुर की मृत्यु पर पृथिवी द्वारा कृष्ण की स्तुति, नरक -- पुत्र भगदत्त को कृष्ण को अर्पण करना - नमस्ते देवदेवेश शङ्खचक्रगदाधर । भक्तेच्छोपात्तरूपाय परमात्मन्नमोऽस्तु ते ॥  ), ११.७.३७( दत्तात्रेय द्वारा पृथिवी से क्षमा की शिक्षा प्राप्त करने का कथन - भूतैराक्रम्यमाणोऽपि धीरो दैववशानुगैः। तद्विद्वान्न चलेन्मार्गादन्वशिक्षं क्षितेर्व्रतम् ३७। ), मत्स्य १०.१२( पृथु द्वारा पृथिवी का निग्रह, विभिन्न सर्गों व प्राणियों द्वारा पृथिवी का दोहन - दग्धुमेवोद्यतः कोपाच्छरेणामितविक्रमः। ततो गोरूपमास्थाय भूः पलायितुमुद्यता।। ), १२४.११( पृथिवी के विस्तार व परिमाण का कथन - शतार्द्धकोटिविस्तारा पृथिवी कृत्स्नशः स्मृता।।तस्याश्चार्द्धप्रमाणञ्च मेरोश्चैवोत्तरोत्तरम्।), १६९( रसा/पद्मा नामक पृथिवी के पद्म केसर, दल आदि अङ्गों का कथन, नाभिकमल में स्थिति- या पद्मा सा रसा देवी पृथिवी परिचक्षते। ये पद्मसारगुरवस्तान्दिव्यान्पर्वतान् विदुः ।।  ), २८४( हेमधरा दान विधि, पृथिवी के विभिन्न नाम - कारयेत्पृथिवींहैमीं जम्बूद्वीपानुकारिणीम्। मर्यादापर्वतवतीं मध्ये मेरुसमन्विताम् ।। ), मार्कण्डेय ४९.६३/४६.६३( त्रेतायुग में प्रजा द्वारा ओषधियों पर जीवन यापन करने पर पृथिवी द्वारा ओषधियों का ग्रसन, ब्रह्मा द्वारा सुमेरु को वत्स बनाकर पृथिवी से ग्राम्य व आरण्यक ओषधियों के बीजों का दोहन - स चापि तत्त्वतो ज्ञात्वा तदा ग्रस्तां वसुन्धराम् । वत्सं कृत्वा सुमेरुन्तु दुदोह भगवान् विभुः॥ ), वराह १.१६( पृथिवी द्वारा वराह के उदर में ब्रह्माण्ड का दर्शन, स्तुति तथा न्यास - हसतस्तस्य कुक्षौ तु जगद्धात्री ददर्श ह ।। रुद्रान् देवान् सवसवः सिद्धसंघान् महर्षिभिः ।। ), ११२.३०( पृथिवी रूपी उभयतोमुखी कपिला गौ के दान की विधि व महत्त्व का वर्णन - जायमानस्य वत्सस्य मुखं योन्यां प्रदृश्यते ।। तावत्सा पृथिवी ज्ञेया यावद्गर्भं न मुञ्चति ।। ), वामन ६९.१३०( इन्द्र के भूमि पर गिरने से पृथिवी के कम्पन, शमीक - भार्या के एक पुत्र के द्विगुणित होने तथा कम्पन के कारण उत्पन्न पुत्र के इन्द्र - सारथि मातलि बनने का वृत्तान्त - पृथिव्यां कम्पमानायां शमीकर्षेस्तपस्विनी। भार्याऽब्रवीत् प्रभो बालं बहिः कुरु यथासुखम्।। ), वायु ५०.६४( पृथिवी के विस्तार का कथन - शतार्द्ध कोटिविस्तारा पृथिवी कृत्स्नतः स्मृता। तस्या वार्धप्रमाणेन मेरोर्वै चातुरन्तरम् ॥ ), ६२.१७५/२.१.१७५( पृथु द्वारा पृथिवी दोहन के संदर्भ में वत्स, दोग्धा आदि - ऋषिभिः स्तूयते वापि पुनर्दुग्धा वसुन्धरा । वत्सः सोमस्त्वभूत्तेषां दोग्धा चापि बृहस्पतिः ॥ ), ६३.१/२.२.१( पृथिवी के मेदिनी, वसुधा आदि नामों का कारण - आसीदियं समुद्रान्ता मेदिनीति परिश्रुता। वसु धारयते यस्माद्वसुधा तेन चोच्यते ।।  ), विष्णु १.४( यज्ञवराह द्वारा रसातल से पृथिवी का उद्धार, पृथिवी द्वारा वराह की स्तुति, वराह द्वारा पृथिवी को समुद्र पर स्थापित करना - निरीक्ष्य तं तदा देवी पातालातलमागतम् । तुष्टाव प्रणता भूत्वा भक्तिनम्रा वसुन्धरा ।। ), १.१३.७३( पृथु द्वारा पृथिवी का निग्रह - प्रजानामुपकाराय यदि मां त्वं हनिष्यसि । आधारः कः प्रजानां ते नृपश्रेष्ठे भविष्यति ।।), ४.२४.१२७( पृथिवी द्वारा राजा जनक से पृथिवी/आत्म जय की व्यर्थता का कथन - पूर्वमात्मजयं कृत्वा जेतुमिच्छंति मंत्रिणः । ततो भृत्यांश्च पौरांश्च जिगीषंते तथा रिपून् ।।), विष्णुधर्मोत्तर १.१०९.२१( पृथु द्वारा गौ रूपी पृथिवी को दोहन योग्य बनाने तथा विभिन्न वत्सों के लिए पृथिवी को दोहन का वृत्तान्त - ततो वैन्यभयत्रस्ता गौर्भूत्वा प्राद्रवन्मही ।। ब्रह्मलोकादिकाँल्लोकान्न च त्राणमविन्दत ।। ), २.१३२.१२( पार्थिवी शान्ति के मयूराभ वर्ण का उल्लेख - पार्थिवी च मयूराभा वर्णतः कथितास्तव ।। ), शिव २.४.१९.१८( गणेश व कार्तिकेय द्वारा विवाह हेतु पृथ्वी की परिक्रमा, गणेश द्वारा माता - पिता को पृथ्वी मान कर परिक्रमा कर विजयी होने का वृत्तान्त - यश्चैव पृथिवीं सर्वां क्रांत्वा पूर्वमुपाव्रजेत् ।। तस्यैव प्रथमं कार्यो विवाहश्शुभलक्षणः ।।), स्कन्द १.२.१३.१८९( शतरुद्रिय प्रसंग में पृथिवी द्वारा मेरु लिङ्ग की द्वितनु नाम से पूजा का उल्लेख - पृथिवी मेरुलिंगं च द्वितनुश्चास्य नाम च॥ ), २.१.३१.१८( शिव विवाह में पृथिवी का असमान होना, अगस्त्य के दक्षिण दिशा में गमन से पृथिवी को समानता की प्राप्ति - तद्भूरिभारसंभग्ना भूमिरुत्तरसंश्रया ।। निम्नतामाययौ तावद्यावत्पातालमास्थिता ।।), २.१.३६.१( यज्ञवराह द्वारा पृथिवी के उद्धार के संदर्भ में यज्ञवराह के स्वरूप का कथन - अपश्यत्प्रणिधानेन महीं पातालगोचराम्।। अतिमात्रभयोद्विग्नां परीतां महताम्बुना ।।), ५.२.७४.२३( राजा रिपुञ्जय के शासन में पृथिवी के पर्वतों, द्वीपों आदि से रहित अकृष्टपच्या होने का कथन - नासीत्पृथिव्यां शैलस्तु स्थलो वा द्वीप एव च ।। अकृष्टपच्या पृथिवी स्वादवद्भिः फलैर्युता ।। ), ५.३.२०.४७( पृथिवी द्वारा प्रलय काल में मार्कण्डेय को स्तन पान कराना - स मे पुत्रः समुत्पन्नो यथोक्तो मे महामुने । स्तनं पिब त्वं विप्रेन्द्र यदि जीवितुमिच्छसि ॥ .. ), ५.३.५१.५६(  प्रसूतकाला गौ की पृथिवी संज्ञा का कथन - यावद्वत्सस्य पादौ द्वौ मुखं योन्यां प्रदृश्यते । तावद्गौः पृथिवी ज्ञेया यावद्गर्भं न मुञ्चति ॥ ), ६.२६८ ( चक्रवर्तित्व हेतु पृथिवी दान का माहात्म्य - पृथ्वीदानं पुरा कृत्वा गौतमेश्वरसंनिधौ। दत्त्वा हिरण्मयीं पृथ्वीं सार्वभौमास्ततः स्थिताः॥), ७.१.११.६२( सूर्य - पत्नी निक्षुभा के अपर नाम पृथिवी का उल्लेख - तयोस्तु राज्ञी द्यौर्ज्ञेया निक्षुभा पृथिवी स्मृता ॥ ), ७.१.९८.३( दैत्यभार से पीडित पृथिवी द्वारा स्थापित पृथिवीश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, लिङ्ग की चन्द्रेश्वर लिङ्ग से समानता - यो दद्यात्काञ्चनं मेरुं कृत्स्नां वाऽपि वसुन्धराम् ॥ यः पूजयति पृथ्वीशं स तयोरधिकः स्मृतः ॥), हरिवंश १.६( पृथु द्वारा पृथिवी का दोहन, विभिन्न दोग्धा व वत्स- बृहस्पतिर्महातेजाः पात्रं छन्दांसि भारत । क्षीरमासीदनुपमं तपो ब्रह्म च शाश्वतम् ।।  ), १.५२.४०( पृथ्वी के मेदिनी नाम का कारण, पृथ्वी द्वारा पूर्व काल में स्वभार हरण करने वाली घटनाओं का कथन, द्वापर में भार हरण करने की प्रार्थना - दैत्ययोर्मेदसाच्छना मेदिनीति ततः स्मृता । प्रभावात्पद्मनाभस्य शाश्वती जगती कृता ।।  ), ३.३४( हिरण्मय अण्ड से स्रवित द्रव के भार से पृथिवी को पीडा, पृथिवी का भार हरण करने के लिए यज्ञवराह का अवतार - शैलैः समस्तैर्गहना विषमा मेदिनी भवत् ।। ..पीडिता गुरुभिर्देवी पृथिवी व्यथिताभवत् ।। ), ३.३५( वराह द्वारा पृथिवी पर पर्वतों व नदियों की सृष्टि ), महाभारत कर्ण ९०.१०३(सव्यं चक्रं महीग्रस्तं दृष्ट्वा दैवादिदं मम । पार्थ कापुरुषाचीर्णमभिसन्धिं विसर्जय ॥), शल्य ९.१९(उद्वृत्तनयनैस्तैस्तु गतसत्वैः सुविक्षतैः। व्यभ्राजत मही राजन्पुण्डरीकैरिवावृता।।), स्त्री ८.२२( पृथिवी का ब्रह्मलोक में जाना, विष्णु द्वारा दुर्योधन के माध्यम से पृथिवी के भार हरण का आश्वासन - धृतराष्ट्रस्य पुत्राणां यस्तु ज्येष्ठः शतस्य वै। दुर्योधन इति ख्यातः स ते कार्यं करिष्यति।। ), वा.रामायण १.४०.११( अश्वमेधीय अश्व की खोज के लिए सगर द्वारा पुत्रों को पृथिवी खनन का निर्देश, सगर - पुत्रों द्वारा विभिन्न दिशाओं में विरूपाक्ष, महापद्म, सौमनस, भद्र दिग्गजों से वार्तालाप - महापद्मं महात्मानं सुमहत्पर्वतोपमम् । शिरसा धारयन्तं गां विस्मयं जग्मुरुत्तमम् ॥ ),  लक्ष्मीनारायण १.५०.७( ब्रह्मा द्वारा प्रजा की प्रतिष्ठा के लिए नारायण से जल प्लावित पृथिवी को पृथुल रूप देने की प्रार्थना, वराह द्वारा जल से पृथिवी का उद्धार तथा पृथु द्वारा पृथिवी को समतल बनाने का वृत्तान्त - विना पृथुलभावं वै जले स्थास्यन्ति काः प्रजाः ।..स्थूलावस्थां समानय्य पृथ्वीरूपं कुरु प्रभो । ), १.१०७( विवाह हेतु कार्तिकेय व गणेश में पृथिवी परिक्रमा की प्रतिस्पर्द्धा, गणेश  द्वारा माता, पिता व गौ की परिक्रमा कर विजयी होना - यश्चैव पृथिवीं सर्वां क्रान्त्वा पूर्वमुपाव्रजेत् ॥ तस्यैव प्रथमं कार्यो विवाहः शुभलक्षणः ।। ), १.१३२.६४( हिरण्याक्ष द्वारा जलान्त:स्थित पृथिवी का भोग करने व वराह द्वारा पृथिवी के उद्धार का कथन - जलान्तःस्थां महापृथ्वीं भुंक्ते राजाधिराजवत् ।..वाराहरूपमास्थाय नयामि यमसादनम् । ), १.१३४( हिरण्याक्ष द्वारा विशाल रूप धारण कर पृथिवी को जल में ले जाने का वृत्तान्त, वराह द्वारा हिरण्याक्ष का वध व पृथिवी का उद्धार ), १.३०२, १.३९८.१०( धरणी/पृथिवी का भगवान् वराह से मिलन, धरणी द्वारा वेदवती की छाया पद्मिनी का दर्शन - एतस्मिन्नन्तरे लक्ष्मि! धरणी तत्र चागता ।। इलाया वै पिंगलया सखीभ्यां हि समन्विता । ), १.३९८.४७( धरणी का वियद्राज की पत्नी बनकर क्षेत्रकर्षण से प्राप्त कन्या की पालिता माता बनना - तस्य जज्ञे कुलोत्तंसो वियन्नामा सुतः शुभः । तस्य पत्नी च धरणी नाम्नाऽऽसीच्छुद्धवंशजा ।। ), १.३९८.७७( धरणी द्वारा वसुदान पुत्र को जन्म देना - अथ काले गते पत्नी धरणी सुषुवे सुतम् । ), २.२.९७( हिरण्याण्ड असुर पर संकर्षण की गदा के प्रहार से मेरु के खण्डों का आकाश आदि में उडकर ग्रह आदि बनना, लवण समुद्र वाले पृथिवी के भाग के पृथिवी से अलग हो जाने का कथन, हिरण्याण्ड व हिरण्यकूर्च असुरों की मृत्यु पर मेरु तथा लोकालोक पर्वत की पृथिवियों का कांचनमयी होना - तदा गदाप्रहारैश्च गदामारैरनेकधा ।। प्रभिन्नो दक्षिणो भागः पृथ्व्या मेरोरवाऽक्षरत् । ), २.१०.२१( पाताल पाद आदि के रूप में पृथिवी के स्वरूप का कथन - पादौ तस्यास्तु पातालं जङघे तस्या रसातलम् । जानू महातलं तस्याः सक्थिनी च तलातलम् ।। ), २.१४०.५२( पृथिवीतिलक प्रासाद के लक्षण - द्वादश तलभागाश्च विंशतितिलकान्वितम् ।। सप्तपञ्चाशदण्डं च पृथिवीतिलकं मतम् । ), २.१७७.५२( गृहारम्भ हेतु पृथिवी की जाग्रती, कलिप्रदा आदि संज्ञाओं की परीक्षा विधि का कथन - .. तदंकसंख्याः सम्मिश्र्य भंक्तव्यास्तुर्यसंख्यया ।एकशेषे स्थिता पृथ्वी गृहारंभे कलिप्रदा ।। ), २.२४६.३१( मातृ व मातुलवर्ग के पृथिवीश होने का उल्लेख - मातृमातुलवर्गाश्च पृथ्वी तया न भेदयेत् ।। ), ३.३२.३१( अनलाद असुर के हननार्थ वह्निनारायण के प्राकट्य पर लक्ष्मी का पृथ्वी - पुत्री पार्थिवी श्री के रूप में जन्म लेने का कथन ), कथासरित् ९.३.११४( वीरवर द्वारा स्त्री वेश धारी भूमि के कथन पर राजा विक्रमतुङ्ग की मृत्यु से रक्षा हेतु स्वपुत्र की बलि देने का वृत्तान्त - उवाच पुत्र मामेतां विद्धि वीरवर क्षितिम् ।। तस्या विक्रमतुङ्गो मे राजा नाथोऽद्य धार्मिकः । ), १४.२.१५२( पृथिवी द्वारा स्वपुत्र मानसवेग को जामाता नरवाहनदत्त की हत्या से रोकना - अथ तं पृथिवीदेवी माता सत्वरमेत्य सा । राजानमब्रवीत्पुत्र हन्तव्योऽयं न ते न मे ।।..) prithivee/ prithivi

 

 

पृथु अग्नि १८.१२( वेन के दक्षिण पाणि के मन्थन से उत्पन्न पृथु के संक्षिप्त जीवन वृत्त का कीर्तन ), १०७.१५( विभु - पुत्र?, नक्त - पिता ), देवीभागवत ७.९.३१( अनेना - पुत्र, ककुत्स्थ - पौत्र, विश्वरन्धि - पिता ),  पद्म १.७.७९( सुवर्म, शङ्खपद आदि ४ दिक्पालों द्वारा पृथु के पृथिवी के राजा पद पर  अभिषेक का कथन ), १.८.१०( वेन से पृथु का जन्म, पृथु द्वारा पृथिवी के दोहन का वृत्तान्त ), १.३२.५( पृथु नामक ब्राह्मण का पर्युषित आदि ५ प्रेतों से संवाद, पृथु द्वारा प्रेतों की मुक्ति का उद्योग ), २.२८+ ( पृथु की वेन से उत्पत्ति, पृथु द्वारा पृथिवी का दोहन ), ६.९०( पृथु द्वारा नारद से कार्तिक माहात्म्य का विस्तार से श्रवण ), ब्रह्म १.२.४९( वेन की बाहु के मन्थन से पृथु की उत्पत्ति, पृथु द्वारा वसुधा का दोहन ), २.७१.१०( वेन की दक्षिण बाहु के मन्थन से पृथु के जन्म तथा पृथु द्वारा गौ रूपा पृथ्वी के दोहन का संक्षिप्त वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.१४६( पृथु की वेन से उत्पत्ति व पृथु द्वारा पृथिवी दोहन का आख्यान ), १.२.३७.२२( अन्तर्धान व पावन - पिता, वंश का कथन ), २.३.१.७९( पृथुरश्मि : वरत्री के ४ पुत्रों में से एक ), २.३.७०.२२( शशबिन्दु के ६ प्रधान पुत्रों के पृथुश्रवा, पृथुयशा, पृथुकर्मा आदि नामों का उल्लेख ), २.३.७०.२९( पृथुरुक्म ; रुक्मकवच के ५ पुत्रों में से एक, स्वभ्राता राजा रुक्मेषु का अनुगामी ), भागवत ४.१५( वेन की देह के मन्थन से पृथु की उत्पत्ति, राज्याभिषेक ), ४.१९( पृथु द्वारा अश्वमेध यज्ञ के अनुष्ठान का वर्णन ), ४.२०+ ( पृथु की यज्ञशाला में विष्णु का प्रादुर्भाव, पृथु द्वारा स्तुति, विष्णु द्वारा प्रजा को उपदेश, सनकादि का पृथु को उपदेश, पृथु का तप व परलोक गमन ), ४.२२.५३( अर्चि - पति, विजिताश्व आदि पुत्रों के नाम ), ८.१.२७( तामस मनु के १० पुत्रों में से एक ), ९.६.२०( अनेना - पुत्र, विश्वरन्धि - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), ९.२३.३५( रुचक के ५ पुत्रों में से एक, यदु वंश ), ९.२४.१८( चित्ररथ के पुत्रों में से एक, वृष्णि वंश ), मत्स्य ९.१५( तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), १०.१०( पृथु की उत्पत्ति, पृथु द्वारा पृथिवी के दोहन का वृत्तान्त ), ४४.२१( शशबिन्दु के ६ प्रधान पुत्रों के पृथुश्रवा, पृथुयशा, पृथुकर्मा आदि नामों का उल्लेख ), ४४.२८( पृथुरुक्म : रुक्मकवच के ५ पुत्रों में से एक, स्वभ्राता राजा रुक्मेषु का अनुगामी ), ४५.३२( अक्रूर व अश्विनी के पुत्रों में से एक ), ४८.१९( पृथुदर्भ : शिबि के ४ पुत्रों में से एक ), ४९.५५( पार - पुत्र, सुकृत - पिता, नीप/भरद्वाज वंश ), ५०.२( पुरुजानु - पुत्र, भद्राश्व - पिता, अजमीढ/पूरु वंश ), १४५.१००( १९ मन्त्रकार भार्गव ऋषियों में से एक ),  वामन ४७.२१( वेन से पृथु के जन्म का प्रसंग, पृथु द्वारा पिता के म्लेच्छ योनि से उद्धार का उद्योग ), वायु ३३.५७( विभु - पुत्र, नक्त - पिता, भरत वंश ), ५९.९७( १९ मन्त्रवादी ऋषियों में से एक ), ६२.१०७( पृथु की वेन से उत्पत्ति, पृथु द्वारा पृथिवी के दोहन की कथा ), ६३.२२( पृथु वंशानुकीर्तन ), ६५.७९/२.४.७८( पृथुरश्मि : वरूत्री के ४ पुत्रों में से एक ), ८८.२५/२.२६.२५( पृथुरोमा : अनेना - पुत्र, वृषदश्व - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), ९५.२२/२.३३.२२( शशबिन्दु के ६ प्रधान पुत्रों के पृथुश्रवा, पृथुयशा, पृथुकर्मा आदि नामों का उल्लेख ), ९६.११३/२.३४.११३( चित्रक के पुत्रों में से एक ), १००.१०९/२.३८.१०९( पृथ : रौच्य मनु के १० पुत्रों में से एक ), विष्णु १.१३.३८( पृथु चरित्र ), १.१४.१( पृथु के वंश का कथन ), १.२२.१( पृथु के राज्याभिषेक के पश्चात् ब्रह्मा द्वारा नक्षत्रों, ग्रहों, विप्रों आदि के अधिपतियों की नियुक्ति का वृत्तान्त ), २.१.३७( विभु - पुत्र, नक्त - पिता, भरत वंश ), ३.१.१८( तामस मनु के काल में सप्तर्षियों में से एक, तामस मनु - पुत्र ), ४.२.३४( अनेना - पुत्र, विष्टराश्व - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), ४.१२.६( शशिबिन्दु के ६ प्रधान पुत्रों के पृथुश्रवा, पृथुकर्मा, पृथुकीर्ति, पृथुयशा, पृथुजय, पृथुदान नामों का उल्लेख ), ४.१२.११( रुक्मकवच के ५ पुत्रों में से एक, यदु वंश ), ४.१४.११( चित्रक के पुत्रों में से एक, वृष्णि वंश ), ४.१९.४२( सुपार - पुत्र, सुकृति - पिता, भरद्वाज/भरत वंश ), ५.३७.४६( एरका रूपी वज्र से पृथु, विपृथु आदि यादवों की मृत्यु का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.१०८.६४( वेन के दक्षिण पाणि के मन्थन से पृथु की उत्पत्ति का कथन ), १.१०९( पृथु का अभिषेक, पृथु द्वारा पृथिवी का दोहन ), स्कन्द १.२.१३.१८८( शतरुद्रिय प्रसंग में पृथु द्वारा तार्क्ष्य लिङ्ग की सहस्रचरण नाम से पूजा का उल्लेख ), ३.१२१.७( पाञ्चाल देश में पृथु की पूजा का निर्देश ), ४.२.८३.७४( पृथु तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.२.४९( पृथु द्वारा स्थापित पृथुकेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : पृथु द्वारा स्त्री रूपी पृथिवी की हत्या से मुक्ति हेतु स्थापना ), ७.१.३३६.९३( पृथु के पृथु नाम का कारण ), ७.१.३३६.१७६( पृथु द्वारा गोष्पद तीर्थ में पिता वेन के पापों का क्षालन, पृथिवी दोहन की कथा ), हरिवंश १.५( पृथु के जन्म व चरित्र का वृत्तान्त ), ३.३०.३(  त्रेतायुग के आरम्भ में प्रजा द्वारा पृथु का राज्याभिषेक करने तथा देवों व दानवों द्वारा समुद्र मन्थन करने का कथन ), वा.रामायण १.७०.२४( अनरण्य - पुत्र, त्रिशङ्कु - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), लक्ष्मीनारायण १.५०.४२( यज्ञवाराह द्वारा जल से उद्धृत पृथिवी को समतल करने का कथन ), २.१७७.६४( श्रीहरि का राजा पृथु की नगरी कृपास्थली में आगमन तथा राजा पृथु के पूर्व जन्म का वर्णन : राजा पृथु का पूर्व जन्म में आरण्यक मुनि होने का कथन ), कथासरित् ६.२.१९१( पृथु द्वारा स्वपुत्री हेतु सुरभि को स्वर्ग से लाने का कथन ), द्र. मन्वन्तर, विपृथु prithu

Esoteric Aspect of Prithu